संक्षिप्त जीवनी परमहंस स्वामी रामतीर्थ | Sanxipt Jivani Paramahans Swami Ramatirth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
376
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जिल्द दुलरी संदित-जीयनी १९
मिलेगा । चहद मनुष्य चदुत घुरा है । वद उस मनुष्य जैसा है
जिसने श्रापसे पक वारः कदा था कि खमे प्क कविता वना दौ,
मगर उसमें नाम मेरा रखना व”... ... ..८ -- ०; ^ ००० -० ०००
: मैं यद ज्ञानता हूँ कि मिदनत बड़ी श्रच्छी वस्तु है ; मगर
मिदनत इस तरद पर नहीं करनेवासा है कि बीमार दो जाऊँँ।
नि मनी परमात्मन् | मेरा मन सिंदनतं में श्रधिक लगे । मैं
निहाथत दज्ञं की मिहनत क
गोसाई तीर्थंसमजी गणित में बड़े तीष थे, श्रौर परिथमी
भी प्रसिद्ध थे ; किन्तु उस वपं बीज्य० की परीता न जाने किख
दंग से हुई कि श्रेणी के चतुर श्रौर छयोग्य विद्यार्थी तो रजु
स्तीणं रहे श्रोर श्रयोग्य निकम्मे उत्त दो गण । हमारे गोखाह
ज्ञी केवल शमरेजञी के पर्वे म तीन नम्बर कम . मिलने से शरद
तीर्थ कर दिये गये । इस बात से कालिज के प्रोफ़ेसर शरीर
प्रिंसिपल को भी बड़ा श्राइ्वय हुव्या । उन्दोंने बहुत प्रयत्न किया
कि गोसाई” जी के झँगरेज़ी के परवे दुबारा देखे जायें, “परन्तु
सब व्यथं हुआ । फिर क्या था, लगे झगरेज़ी पत्रों में लेख-पर-
लेख निकलने । युनिवर्सिटी के फेलो मद्दाशयगण, घबराये । परि-
णाम यद निकला किं भविष्य के लिये यह ल पासे किया गया
कि जिच विद्यार्थियों के किसी विषय मैं पास श्रंकों से ५ शरक
कम दो, था समस्त झंकों के जोड़ में खे ५ अंक कम दो, तो वे
विचाराधीन ( ए०त6/ ८०05पेढावपं0ए ) रक्खे जाये, श्र
उनके परे फिर देसे जय । इख नियम से यद्यपि श्न्य चिद्या-
थियोँ के लिये भविष्य में कुछ खुमीता तो हो गया, किन्तु दमारे
गोसाई'शी उस ब्ष दी० ए० में रद गये श्नौर छुबारा पढ़ने को
विव्यं किये गये! ` भ 4. = 9
इस श्रचानक विपत्ति से गोक्ताई जी के खकोमल हदय परः
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