संक्षिप्त जीवनी परमहंस स्वामी रामतीर्थ | Sanxipt Jivani Paramahans Swami Ramatirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जिल्द दुलरी संदित-जीयनी १९ मिलेगा । चहद मनुष्य चदुत घुरा है । वद उस मनुष्य जैसा है जिसने श्रापसे पक वारः कदा था कि खमे प्क कविता वना दौ, मगर उसमें नाम मेरा रखना व”... ... ..८ -- ०; ^ ००० -० ००० : मैं यद ज्ञानता हूँ कि मिदनत बड़ी श्रच्छी वस्तु है ; मगर मिदनत इस तरद पर नहीं करनेवासा है कि बीमार दो जाऊँँ। नि मनी परमात्मन्‌ | मेरा मन सिंदनतं में श्रधिक लगे । मैं निहाथत दज्ञं की मिहनत क गोसाई तीर्थंसमजी गणित में बड़े तीष थे, श्रौर परिथमी भी प्रसिद्ध थे ; किन्तु उस वपं बीज्य० की परीता न जाने किख दंग से हुई कि श्रेणी के चतुर श्रौर छयोग्य विद्यार्थी तो रजु स्तीणं रहे श्रोर श्रयोग्य निकम्मे उत्त दो गण । हमारे गोखाह ज्ञी केवल शमरेजञी के पर्वे म तीन नम्बर कम . मिलने से शरद तीर्थ कर दिये गये । इस बात से कालिज के प्रोफ़ेसर शरीर प्रिंसिपल को भी बड़ा श्राइ्वय हुव्या । उन्दोंने बहुत प्रयत्न किया कि गोसाई” जी के झँगरेज़ी के परवे दुबारा देखे जायें, “परन्तु सब व्यथं हुआ । फिर क्या था, लगे झगरेज़ी पत्रों में लेख-पर- लेख निकलने । युनिवर्सिटी के फेलो मद्दाशयगण, घबराये । परि- णाम यद निकला किं भविष्य के लिये यह ल पासे किया गया कि जिच विद्यार्थियों के किसी विषय मैं पास श्रंकों से ५ शरक कम दो, था समस्त झंकों के जोड़ में खे ५ अंक कम दो, तो वे विचाराधीन ( ए०त6/ ८०05पेढावपं0ए ) रक्‍खे जाये, श्र उनके परे फिर देसे जय । इख नियम से यद्यपि श्न्य चिद्या- थियोँ के लिये भविष्य में कुछ खुमीता तो हो गया, किन्तु दमारे गोसाई'शी उस ब्ष दी० ए० में रद गये श्नौर छुबारा पढ़ने को विव्यं किये गये! ` भ 4. = 9 इस श्रचानक विपत्ति से गोक्ताई जी के खकोमल हदय परः




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