भारतीय विचारधारा में आशावाद | Bhaaratiiy Vichaaradhaaraa Me Aashaavaada
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय विचार-धारय मं आशावाद्
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पहला अध्याय
्राक्तेप
सुविधा ओर विचार-संगति की दृष्टि से किसी विषय को
प्रारंभ करने के परव उसके विशिष्ट शब्दों की व्याख्या कर लेना
स्देच आवश्यक होता है । थोड़े बहुत हेर-फेर के साथ श्राशा-
वाद' के अनेक अथ हैं । लाइबनीज़ के अनुसार यह पक.
सिद्धांत है जो उन सभी लोकों की अपेत्ता-जनकी कल्पना
की जा सकती है--इस प्रत्यक लोक को श्रेप्ठतम मानता है ।
इस मन के श्रनुसार विश्व में सत् की असत् पर सदेव विजय
होती है । दसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि यह मन की
पक प्रवृत्ति है जो प्रत्येक वचस्तु मे मंगल की कल्पना करती
है श्र प्रत्यक्ष असफलता में भो, जहाँ निराशा का नाम भी
नहीं रहता; आशाचादी के हृदय में श्राशा श्रौर प्रसन्नता का
निचः रहना है ओर उसकी आत्मा को पूण विश्वास होता
है किंत में न्याय और सत्य की ही विजय होगी । भय नहीं
आशा ही उसका पथ-प्रदशन करती है ।
भरताय चिचार-घारा से अभिप्राय प्राचीन वेदिक धर्म के
घामिक आर दाशे नक विचार-ससूदों, उसके षट्-दशेन-सिद्धांतों;
बौद्ध आर जेन घम के दाशनिक विचारों श्रौर घार्मिक अनु
शासनों से है ।
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