ग्वालियर जैन निर्देशिका | Gavaliyar Jain Nirdeshika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
270
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(३) उत्तर पश्चिम समूहः--इसमें लादिनाथ
की एक मटस्वपूण मृति गनी है जिस पर स० १५२३७
का मभिलेख अकित है ।
(४) उत्तर पूर्व समहः:-- इसमें भी छोटी-छोटी
मूतिया है । उन पर भी कोई लेख नहोने से
ऐतिहासिक हृष्टि से अधिक महत्व नहीं रखती हैं ।
(५) दक्षिण पूर्व समृह्:--इस समूह की मुर्तिया
कला की दृष्टि मे अत्याधिक महत्वपू्णं है । ये सूत्तियां
पुलत्रागके दरवाजे से निकलते ही लगभग आधे मील
के क्षेत्र में खुदी हुई दिखाई देती हैं । अन्य मूर्तियों की
मणेक्षा कुछ बाद में बनने के कारण ये अभ्यस्त हाथों
द्वारा निर्मित हुई है । अत इनमें कला का रूप निलर
उठा है 1
इस समूह में लगभग २० प्रतिमाय २० से ३०
फुट तक की ऊंब्राई की और लगभग इतनी हो ८ से
१४ फुद की ऊचाई लिये हुए है । इनमें अ'दिनाथ,
नेमिनाथ, पद्मप्रमु, चन्द्रप्रमभू समवनाथ, कुन्यनाथ,
ओर महावीर भगवान की मूतिया हैं । इनमें कुछ
मूर्तियों पर सम्बत १५२४५ से १५३० तक के अभिलेख
सुद्दे हुये है ।
इनके अतिरिक्त तेली की लाट के पास तथा यूजरी
मरन मप्रहानयमे रणी प्रतिमयेभी इनकी समकालीन
प्रतीत होनी है । इससे प्रतीत होता है कि उपरोक्त
समूदों के अतिरिक्त अन्य प्रतिभाओं का भी निर्माण
हुआ था ।
ग्रन्थ निर्माण व सृ्ति प्रतिष्ठायें :---
कीलिसिंह के शासन काल मे ही कुशा साहनी
जैसवाल वंशज् ने गोपाचल पहाड़ी के बाहरी तरफ कुछ
गुफाओं में मूर्तियां खुदवाई, तथा मन्दिर बनवाकर
प्रत्िष्ठायें करवाई जिसमें लाखों शपये ब्यय हुये ।
वि --~-~-~----
अग्रव,ल वंशज गोयन गोत्री खरा नामक धर्म प्रेमी
एवम आम ममंज्ञ सज्जन मे भी गोपाचल के बाहरी
ओर गुफा-मन्दिर बनवाकर आवापं महीशन्दे जी
महाराज द्वारा प्रतिष्ठा करवाई । सन १४५८ में बावषी
कीओर गोयालारे वज दुमुदबन्द ने पाश्वेनाथ की
मूति की प्रतिष्ठा भट्रारक सिडकीति के सहपोग से
करवाई 1
सन १४६८ मे ग्वालियर के जमाल कुन चूषण
उल्हा साहू के जेष्ठ पुत्र साहू पदर्मामह ने अपने चचल
लक्ष्मी का उपयोग करने के लिये २४ जिनालयों को
निर्माण करवाया तथा १ लाख ग्रन्थ लिखबाकर भेंट
किये ।* इनके राज्य काल में जैन साहित्य रचना का
भौ कयं हुआ । कविवर रईघू ने इनके राज्य काल
मे सम्पकव-कौीमुदो” तथा. “खावकाचार'' की
रचना की ।
उपरोक्त स्दिरों में से कुछेक समाप्त हो गये हैं
ओर कुष्ठ का जीर्णोद्धार होकर नये मन्दिर श्रन गये हैं
जो अभी भी म्वालियर में अपने परिवतित रूप में
स्थित हैं । साहित्य में अधिकतर भाग नष्ट हो गया है
बहुत कम ही शेप है ।
सन १४६४ में “ज्ञान, णंब' नामर प्रन्ध कौ एक
प्रतिलिपि, लिपिवद्ध की गई ।*ै भट्टा० गुगभद्र ने भी
ग्वालियर निवासी जैन श्रवको की प्रेरणा से अनैको
कथाओं की रचने) की ।
कल्याणमलर :---
कीतिसिह की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र
कत्याणमल (म्ना वह) ने शासन को बागडोर मभानी
इन्होने सन् १४२४ से सन् १४२९. तक ही शासन
किया ।. संभवत: अपने शासन काल के ७ व्धों में
इन्होंने कीतिसिंह के कार्यों को 'जो अधूरे थे' पूर्ण किया
~ ~ --
पल
१. विज्जुल चंचलु लश्छीसहाउ, भालोहविहुड जिणधम्भमाउ । जिणगथु निहव लकु एकु, सावय
लकषखा हारीति रिक्लु । मुणि भोजन भुंजाविय सहासु, चउवीस जिणालउ किउ सुभासु--
--जौन प्न्य प्रणस्ति संर पू. १४४ बाराबकी शास्त्र मण्डार ।
२. यह ग्रन्थ जैन सिद्धान्त भवन आरा में उपलब्ध है ।
ग्यालियर--प्रतीत की दृष्टि में
७
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