आचारप्रबन्ध | Aacharaprabandh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संक्षि भूदेवचरितं 1 पक ' बिहार, उड़ीमार्म शति स्मृति द्वार दर्शन शास्त्रों के अध्यापकों सा ५०} सल डर काणीके छात्रों का 3६) साल दत्ति दो. लाती दे 1 . इस फंडसे ही खेराती नःवधालय ( एक 'फबिराजी गिर एक दामियोपियो ) भो चलते हैं । भदेजचालुने थे शापधघालय अपनी माता “' ब्रस्नमयी ” देवीकें नामतें स्यापित क्रिये हं. भदेवयाधुं घर्मेशित्ताके बढ़े पत्तपाती थे । उनका ख्याल धा करि धर्म्तिक्े बिना भारतफी सब्ती उदति नहीं हे सकती बार उंस धर्मालतिके लिये गाव माचमें संस्कत पाठशानायें स्यापित दाकर उनमें संाचारी, निलाभ, तेजस्वी रोर सुहितं द्रध्याएक सचा पुरोहित .तैयार होने चाहिये । ' भ्देबघ्ाव का करते थे कि मारे. देम समालको रता घ्राइनयों हीकें द्वारा दा सकती हे 1 सच्च थार कम्मेंठ घ्राससण तैयार क्षरना हो समाज ओर देशी उति चाहने घालांका पहला फतेंव्य है । सन्न ९८९४ को पद मरको वथा शक्का १९ के दिन मत्तर वर्षों की अस्वा चं दामं गंगोतटपर दश्वप्का ध्यान घपते क्ते महात्मा भदवार का प्रात्मा इस लाकका छोड़कर परम 'परिताफ्री शंरणमं चलागया । ः संसारमें भगवदूधिभतियाका घिक्राश श्रीमगघानुकी इच्छासे उन्दोंको सल्रमय कार्यसाधनक लिये होता हैं । स्वर्गीय मदेवमुल्नापाध्याय श्रोमगधान की प्रधान विभतियोमिंतते थे । इसलिये उनका भी संसारमें खाना देंशशालानु- सार भगघत्त्तार्यप्रम्पादनके लिये की चुद था दसमें सन्देद नहीं । भटेव मुखेपाध्याय महाशयक्ा ध्ाविभाव स्वधमेनिष्ट शरोर, पएरे दुष्ट हिन्ट्ममाजमें भारतके लोतीय जीवनके एक सन्धिकासर्मे हुश्रा । समाजकी गति किस और दानेसे देशक्ा महल होगा, इस सम्बन्धं उप सप्रय सन्देह रठ रहा था । दस देश उस समय ले शक्तियां विशेष रूपसे कार्य करती थ. दर इस समय भी कर रही हें, .उन सघकी परिणति उनके लीघनमें परिस्फट हुईं थी, थार प्रकृत्त पततरमेंभी फदा जा सकता हे कि वे उन शक्तियोक्े घमवाच- से गरहित युग-पव्तेक जातीय दिष्क थे । तत्वज्ञान सम्पच पिताके मघर खेद्द, उदारता, धैथे नोर सुप्रणालो पणें शिक्षासे सम्परण संशय दूर हाकर चार दीश्ायडयापुवंक धहुत पुरश्चरया करनेंपरे साधनमागेमेअयसर, हॉनेपर स्वघमेमें खन्द ्नानयुत्त दरक्भक्ति पुरे. धी । स्वपदेशमक्तिपण अंग्रेली साहित्यक पढ़नें- . धाले भेष बाघ त्रप माताद्े दोच्ता गहण कर कनन, न्मम शार शय-




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