अभिनव प्रकृतिक चिकित्सा | Abhinav Prakritik Chikitsa

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Abhinav Prakritik Chikitsa by कनु गांधी - Kanu Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ओपधिकी विप-क्रिया ११ लक्षण यदि किसी रोगीमें हों; तो उसी औपधिसे उस रोगका निराकरण होगा। विपकरे सिवा और कोई चीज रोगका लक्षण नहीं पेदा करती । इसलिये इसकी सब औपधियां दी विप हैं । अनेक चार रोगके लक्षण समसमें नहीं आते अथवा एक. औषधिको वीसों वीमारियेंकि लक्षणोमें प्रयोग करनेकी व्यवस्था है। जो लक्षण रोगीके शरीरमें नहीं है--तव यदि होमियोपैथी-चिकित्सा-विज्ञान सत्य है--तो उस दवाके प्रयोगसे रोगीके दारीरमें उसी रोगके लक्षण उतन्न होंगे। अतएव भूल चिकित्सासे रोगीका वड़ा अनिष्ट दोगा। छु लोग समते हैं कि गठत दवासे कोई बुराई नहीं होती, किन्तु यह्‌ वात ठीक नहीं । दोमियोपेथी दर्शंनके लेखक ढा० केष्टने कदा हे, “8 एह 18 [0006 10 छा ९,.5-07006. ` 0... 1211 |--जिससे रोग दूर दौ सक्ता है उपसे मलप्य कौ ग््युदो सकती है।” आजकल तो अत्यन्त साधारण लोग भी होमियोपैधिक चिकित्सा करते हैं; किन्तु इसके समान मुद्किठ और कोई चिकित्सा-प्रणाली नददीं है। यह एलोपेंथीसे कहीं अधिक सुश्किल है । इसमें रोगके लक्षण निश्चित करना जितना कठिन है, औपधिकी मात्रा स्थिर करना और भी अधिक कठिन है। ढा० हैनीमेन शने भी कहा है कि केवल अनजुभवके द्वारा ही इसकी मात्रा स्थिर की जा सकती है \0168100, 278) 1 कर-कई दिनों वादं अन्त थोड़ी मात्रामिं दवा देना ही इस प्रणाटीका नियम है; पर जो लोग जानकार नहीं हैं; वे 'एलोपैथीकी तरह वारम्वार दवाइयेंका प्रयोग करते हैं । रोगीके लिये यह एलोपैथीकी अपेक्षा अधिक हानिकरं सिद्ध होती है ( 1010, 216 ) 1 क्योंकि दोमियोपैथी दवाकी प्रत्येक बूद विप है । इन दवाइयेंकि अलावा बहुत-सी चलती दवाइयां ( 0070-07 08.1 160161068 }) चाजारमें प्रचलित हैं। इन दवाइयोंके दोप-गुणकी




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