साथी हाथ बढ़ाना | Sathi Hath Badhana

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Sathi Hath Badhana by सोमा वीरा - Soma Veera

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धारा ओर किनारे 9 प्रताप निशा प्रताप निशा प्रताप निशा प्रताप निशा प्रताप प्रेम समय, मैं तुम्हारी हा गई । तुमसे विवाह 1 यह सव किसने कहा तुमसे, यट भूठ है, निशि । ऋूठ 1 उफ 1 निशा नाज वह पहले वाली भोली निशा नही जो तुम्हरे मूठ को भी सच समयते । वैकमेअदूट घन रहते हुए भी, कितने डाकें डलवाये तुमने * क्तिने निरीह वालको को जनाथ बना डाला ? यही तो था न तुम्हारा व्यापार, जिसके लिए तुम्ह दूर-दूर जाना पडता था क्या ण्ह सब झूठ है * वाला! वौलो। तुमने यहू सव क्यो विया प्रताप? क्सिलिए ? ऐसा क्या लोभ था कि. (रोती है) निशा ! होश की वातें करा । होश में ही ह श्रताप । दु ख ता केवल इतना है कि पहले' ही होश क्यो नहीं थाया । कटघरे मे तुमह खडा देखने से पूव, पुलिस कौ शहादतं सुनने से पहले ठी, मै क्यान समक्ष सकी, वि मनुप्यके स्पमे तुम कितनं वडे निशाचर हो । (कुछ हेसकर) तुम सच टी कुछ पगला गई हो निशि । क्या तुम नही जानती कि निरपराध मनुष्य भी कभी- कभी ऐसे चक्कर में फंस जाता है कि उसे जेल की हवा खानी पड़ जाती है । (व्यग्यसे) तो तुम निरापराध हो ? (अधीर स्वर म) क्या तुमह मुञ्च पर विदनास नही? नहो, पर एव न एक दिन मैं तुम्हे विश्वास दिला ही दूगा । किस्तु निशि, अव समय नहीं । चलो, मेरे साथ भाग चलो । मैं तुम्ह लेन आया हूँ । नहीं नही मैं तुम्हारे साथ वही नहीं जा सकती । पग




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