पण्डित सुखलाल जी | Pandit Sukhlal Ji
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं सुखलाल जी कृत - Pt Sukhlal Ji Krat
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संक्षि परिचय ं ; १४
करंनेके पश्चात सुखलालजीकों एकाध वर्षका विश्राम लेना चाहिए 1” इतनमें
सन् *३० का एंतिहासिक वर्ष आ पहुँचा । सारे देदमें स्वत्रता-संग्रामके नक्कारे
वजने गे । राष्ट्रीय आंदोलनमें संमिलित होनेका सबको आह्वान हुआ ।
प्रसिद्ध दांडीकृच प्रारंभ हुई, और गांधीजीके सभी साथी इस अर्दिसिक संग्रामके
सैनिक वने । पंडितजी भी उसमें संमिलित होनेको अधीर हो उठे, पर उनके
लिये तो यह संभव ही न था, अतः वे मन मसोसकर चुप रह गये। उन्होंने
इस समयका सदुपयोग एक और सिद्धि प्राप्त करनेके लिये किया 1 अत्रजीमं
विविध त्रिपयके उच्चकोटिके गंभीर साहित्यका प्रकादान देखकर पंडितजीकों
अंग्रेलीकी अपनी अज्ञानता चहुत्त खटकी । उन्होंने कटिवद होकर सन् ३०-
३१ के वे दिन अंग्रेजी-अध्ययनमें विताये । इसी सिलसिलेमें वे तोन मासके
लिये द्यांतिनिकेतन भी रह आये । अंग्रेलीकी अच्छी योस्यता पाकर ही उन्होंने
दम छिया 1 4
सन् १९३३ में पंडित्तजी वनारस हिन्दू यूनिवर्सिटीमें जन-दर्दानकें अध्यापक
नियुक्त हुए। दस वर्ष तक इस स्थान पर कायं करनेकें पश्चात् सच् १९४४ में
वे निवृत्त हुए । इस दस वर्षकी अवधिमें पंडितजीने अनेक विद्वानोंको, जिन्हें
पंडितजी * चेतनग्र॑थ * कहते हैं, तेयार क्या और कई अ्रथोका संपादन किया ।
नित्नत्तिके समय हिन्दू विश्वविद्यालय चनारसके तत्कालीन बाइस-चान्सलर
और वर्तमान उपराप्ट्रपति डा० राधघाकृष्णने यूनिवर्सिटीमें ही श्रन्थ-संपादनका
महत्त्वपूर्ण काय सांपने और एतदर्थ आवश्यक धनकी स्यवस्था कर् देनका
पंडितजीके सामने प्रस्ताव रखा, पर पंडितजीका मन अब गुजरातकी ओर
खींचा जा रहा था, अतः उसे वे स्त्रीकार न कर सकें ।
इससे पूर्व भी कलकत्ता यूनिवरसिटीके तत्कालीन चाइ्स-चांसलर श्री
इयासाध्रसाद मुखर्जीने सर आशुतोप चेयरके जन-दशनके अध्यापक्का कार्य
करनेकी पंडितजीसे प्रार्थना की थी, पर पंडितजीन उसमं भी सविनय अपनी
असमर्थता प्रदर्दित की थी 1
खमन्बथसाघधक पांडित्य
पंडितजीके अध्यापन एव सादिल-स्जनकी मुख्य तीन विशेषताएं
(१) “ तामूं लिख्यते फिचित्् “ज ङ भी पदाना या लिखना
हो वह आधारभूत ही होना चाहिए और उसमें अत्पोक्ति, अतिशयोक्ति था
कल्पित उक्तिका तनिक भी समावेद्य नहीं होना चाहिये ।
ही
५
ला
|
User Reviews
No Reviews | Add Yours...