मीश्का का दलिया | Mishka Ka Daliya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मैंने चम्मच पर जरा सा दलिया लेकर चखा। वह ऐसा बदजायक़ा था कि बस!
उसमें जलांध भा रही थी श्ौर उसका स्वाद कइझा या! हम नमक डालना भी भूल
गये ये।मीष्काने भी चखा प्रौर चुर धृक दिया ।
“नहीं,” उसने कहा। “इसे खाने से तो भूखे मर जाना भ्रच्छादै।“-
“द्मे खाया, तो तुमं सचमुच मर जाग्रोगे। “मेने कटा।
लेकिन हम करे कया?“
मुझे कया मालूम !
“गधे हैं हम ! ” मीश्का मे कहा। “मछलियों की तो हमें याद रही हो नहीं ।
इतनी रात में हम मछली पकाने के पड़े में नहीं पढ़ेंगे। जरा ही देर में
सुबहू होनेवाली है ।”
“हम उन्हें उवानेंगे थोड़े ही । हम तो तल सेगे। मिनट भर मे तैयार हो
जायेंगी -देख लेना।
“चलो, ठीक है,” मैने कहा। ” लेकिन इसमें भी भ्रगर दलिये जितनी ही देर
लगी , तो भई में तो बाज भाया ।
“पाच मिनट में तैयार हो जायेंगी > तुम देख लेना ।”
मीश्का ने मछलियों को साफ करके कढ़ाई में ढाला। जरा ही देर में कढाई
गरम हो गई श्रौर मछलिया उसी में चिपक गई। उसने उन्हे श्रौचकर निकालने की
कोशिश की श्रौर उनका भुरता ही थना दिया।
मैने कहां, “तेल के बिना भी कभी किसी ने मछलिया तली है? ”
मीश्का ने तेल की दोतल उठाई शौर कढ़ाई में तेल उडेलकर उसे सीधा भाग
पर रख दिया , जिससे मछलियां जल्दी पक जायें। तेल गरम होकर तड़कने लगा शौर
श्रवानक उसमे प्राय सग गई। मीश्का ने लपककर कढ़ाई उठा सी । में उसपर पानी
डालना चाहता था, लेकिन परमे वृद भर भी पानी नदी धा, इसलिए जब तक
मारा तेल खत्म नदी हौ गया, वह् जतता ही रहा। क्म धुषु मे भर गया प्रर
मछलियों की जगह वस कुछ जते हुए कोयते ही वच रहै!
“तो.” मीष्का ने कटा, “प्रवर क्या तते?
जो नहीं , भव कुछ नहीं तला जायेगा! भ्ल्छे-खासे खाने को ख़राब करने के
अलावा इससे तुम घर को भी फूक दोगे । झ्ाज दिन के लिए तुम काफी पढाई कर चुके ।””
लेविन हम खापेंगें क्या? ”
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