श्री जैन सत्य प्रकाश | Shri Jain Satya Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ ] * ॐ कैन कटय प्रभा [ पर्ष 48 सबनहाहुर जआरीश ४ दाराय्‌६ मखम पतात सिरेडी २०१४). तक खां (सिरे।4) सन्यन। सजा साध छे भरा, ५२६ मेमन सेवा ४१८८स्‌दिदि रत मरन भत आीन नेम कदरे तन कषे, हरी हे = हैशित नयी. मेमन रेषा भारतीय तत्य व६नी अ इषा ६२३ ६५५५१ ७६४ त स्वन्‌ नरे ५९) दैवी 9. माता अभीन तेजा न केता उ४य्‌ मेखडते $ ग जामी ने देसाई देव, 4 भारतीम भरतव धिके ता ख भक्षत अभो र्दी भरं छे, ० ३१२६६ ॐ & द तरफ वरु = इश्वेजे। भेदे 8, तेम >= भाम ५२ २४ नी३०५।य्‌। अयन तेये पथे मु धु, नषे दयं ५८। सा नसरना भाहाटन्यने सारी, यी ५७ २४२, ` छवत्‌ १३०० वर्ष शाख वदी १ शके श्री कासहदगण्छे नीयेना थार तेमः श, १२४५१। ©. तेमे। अ२५। छ मेदे ५५। रेमे नभ ०५५. ' श्री ऋषभनाथस्य ॥ सेवत्‌ १२४५ वषे वैशाख वाद ५ गुरो. ~ कासक्दगच्छे श्र त्िहसुरिभिः प्रतिष्ठितं मगल श्री शन्तिनायस्य | संवत्‌ १२४५ वर्ष वैश्षाखवदि ५ गुरौ महामात्य पृरष्वीषाल- म्मज महामात्य भी धनपठेन वृ. भातृ 2० जगदेवश्रेयसे श्री शांति (नाथ) प्रतिमा करिता कासहूदगण्छे श्री पिहसुरिमिः भरतिष्ठिता, ओे3े अ नवनयिशनी चूतः हे. भेऽ येच बेन ठे. यमत कमे १५ > 9. कीन उध्याथु भटे छ मेतु वधर र तेभम * कासहदोय री सिंहसूरिभि; *' स॑, १२४५ वर्षे कासहदीयगष्छे उधोतनाचार्य संताने श्री पाथनाथ मूर्ति: अतिक्षपह छे श्रो हे्ोतनावब।बीष श्री-- शी सि इसूरिभि: नीयेंने। शेष मेथीये न्धे 9 ८० ॥ सषत्‌ १२२२ फाल्युन सुदि १३ खनौ कारष्टदगण्छे श्रीमदुश्रोताचायै अंताने भवुद बास्तव्ब श्े, वरणाम शदूभायां दूडी (तसो) कव्‌ पुत्रौ म, अहरवाहरौ « क्रिबिम. [स्यू] भारया बाघ ब्रु देनचंबू, बीरचज पासचेद प्रति समस्त कु खनुद्दायेष श्री पाथनाधर्विव आत्मश्रेयोडर्थ कारितमिति ॥।. मंगढ़े महाश्री ॥ चद बावनेदति चिरें जक्तु । छ | च, १३९३ काप शृदगच्छे > दाशा- (मा नेन भान्‌ पीमो-मानीन देन्‌ नेनचह भान्‌ सेल, भन्ने झुस्वेनरभाषा बेणे। बीच! के.)




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