प्रेमचन्द घर में | Premchand Ghar Mein
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
74.09 MB
कुल पष्ठ :
387
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चचपन
आपका जन्म बनारस से चार
संबत १९३७ ( ३५ जुलाई सन
नास अजायवराय था । साता क
श्रीवास्तव थे । आपके तीन बहरें
जीवित रहीं । उस बहन से
होने से आप तेतर कहलाते
योर थ--पिता का रखा न
ही की
माल दुर लमहीं गाँव सें सावन बी १७ ,
०, ) शनिवार को था । पिता
1 नाम आनन्द देवी । आप कायस्थ स्वर
१ू८-<८८ड
थीं । उनमें दो तो मर गई, तीसरी बहत दिनों
८ चर थे । तीन लड़कियों की पीठ पर
। माता हमशा की मरीज़ थीं । पके दो नास
चाचा का रखा हुआ नास
मुंशी नवाचराय । माता-पिता दोनों को संग्रहणी की बीसारी थी । पंदा
होने के दो-तीन साल दाद आपको ज़िला बॉँटा जाना पड़ा । आपकी पढ़ाई
पॉचयें वर्ष शुरू हुई । पहले सौलवी साहब से उदूं पढ़ते थे । उन मोंलवी
लीहव क द्रवाज़ पर सब लड़कों के साथ पढ़ने जाते थे । आप पढने सें
तन थ। लड़कपन सें शाप बहुत दुर्वल थे । आपकी विनोदप्रियता का
लड़कपन ही से सिलता है । एक वार की बात है---कई लड़के सिलकर नाई
का खल खल रहे थे। झ्रापने एक लड़के की हजामत बनाते बाँस की
कमानी से उसका कान ही काट लिया । उस लड़के की मा सत्लाइ हुई
उनका साता से उलाइना देने आई । आपने जैसे ही उसकी झावाज़ सुनी
खिड़की के पास दबक गये । माँ ने दबकते हुए उन्हें देख लिया था. पंक्रडक
चार सकापड़ दिये ।
माँ--उस लड़के के कान तूने क्यों कार रे
मिंने उसके कान नहीं कांटे ; बल्कि वाल बनाया हु)
उसके कान से तो खून वह रहा हैं श्रौर तू कद रहा हैं कि मेंने बाल
सिभी तो इसी तरह खेल रहे
अब ऐसा न खेलना ।'
थ।'
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