प्रेमचन्द घर में | Premchand Ghar Mein

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Premchand Ghar Mein by शिवरानी देवी प्रेमचन्द - Shivrani Devi Premchand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चचपन आपका जन्म बनारस से चार संबत १९३७ ( ३५ जुलाई सन नास अजायवराय था । साता क श्रीवास्तव थे । आपके तीन बहरें जीवित रहीं । उस बहन से होने से आप तेतर कहलाते योर थ--पिता का रखा न ही की माल दुर लमहीं गाँव सें सावन बी १७ , ०, ) शनिवार को था । पिता 1 नाम आनन्द देवी । आप कायस्थ स्वर १ू८-<८८ड थीं । उनमें दो तो मर गई, तीसरी बहत दिनों ८ चर थे । तीन लड़कियों की पीठ पर । माता हमशा की मरीज़ थीं । पके दो नास चाचा का रखा हुआ नास मुंशी नवाचराय । माता-पिता दोनों को संग्रहणी की बीसारी थी । पंदा होने के दो-तीन साल दाद आपको ज़िला बॉँटा जाना पड़ा । आपकी पढ़ाई पॉचयें वर्ष शुरू हुई । पहले सौलवी साहब से उदूं पढ़ते थे । उन मोंलवी लीहव क द्रवाज़ पर सब लड़कों के साथ पढ़ने जाते थे । आप पढने सें तन थ। लड़कपन सें शाप बहुत दुर्वल थे । आपकी विनोदप्रियता का लड़कपन ही से सिलता है । एक वार की बात है---कई लड़के सिलकर नाई का खल खल रहे थे। झ्रापने एक लड़के की हजामत बनाते बाँस की कमानी से उसका कान ही काट लिया । उस लड़के की मा सत्लाइ हुई उनका साता से उलाइना देने आई । आपने जैसे ही उसकी झावाज़ सुनी खिड़की के पास दबक गये । माँ ने दबकते हुए उन्हें देख लिया था. पंक्रडक चार सकापड़ दिये । माँ--उस लड़के के कान तूने क्यों कार रे मिंने उसके कान नहीं कांटे ; बल्कि वाल बनाया हु) उसके कान से तो खून वह रहा हैं श्रौर तू कद रहा हैं कि मेंने बाल सिभी तो इसी तरह खेल रहे अब ऐसा न खेलना ।' थ।'




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