राजसिंह वा चंचल्कुमारी | Rajsingh Vaa Chanchalkumari

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rajsingh Vaa Chanchalkumari by पण्डित हरिदाश - Pandit Haridash

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बाबू हरिदास वैध - Babu Haridas Vaidhya

Add Infomation AboutBabu Haridas Vaidhya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
चच्चलकुमारो । १२ बुढ़ियांको यह हालत देखकर उस खगनयनो पक बुढ़िया अबतक निजोंव स्रूत्ति समझे इए थो ) ने वोणा विनिन्दित खरसे पूछा,--“बुढ़िया ! रोतो क्यों है ?” अब॑ आवाज़ सुनकर बुढ़ियाको विश्वास हो गया कि यह नि्जोंव सूत्ति नहीं है। या तो यह राजकुमारों है या इस सहलको रानी है। मालुम छ्ोता है कि थे सब इसको सलियाँ हैं। यद्द बात ख़यालमें आते हो बुढ़िया ने सिर भुका लिया । पाठक ! आप लोग जानते होंगे कि बुढ़ियाने राज- कुमारीको सहाराज विक्रमसिंह की कन्या समभककर प्रणाम किया । बुढ़ियाने राजकुमारो छोनेकें कारण सिर नहीं नवाया था ; किन्तु अपूव्व स्वर्गीय सोन्दय्यंके सामने सिर कुकाया था। खूबसूरती भी अजब चौज़ है। इसपर अच्छे अच्छे योगो यतियों और विरागि- योंकी नियत डिग जाती है। फिर भला वक्ष वेचारो बुढ़िया उस अतुलनोय सौदय्यके सामने क्यों सिर न मुकातो ?




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now