राजा प्रियंकर | Raja Priyankar

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Raja Priyankar by महाराज आनन्दविजयजी - Maharaj Aanandavijayji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( (गस, (्गस्म ई 7 य द 2 दा गए भे © 3 सरा परिच्छे [) क क ५८० ८2८7 ५9 22 पुत्र-प्रात्ति । {@>-52<ॐ सी नगरमें कुपेरके समान भपार घन-सम्पशिशालों £ दीप; प्र पक श्राय रदता शा, जिसका नाम पासदतत था | थम-सयोगते छट दिनो शद्‌ उसकी सारी संपसिका भाश हो गया सीर यष्ट पेवारा निधन हो गया । इस अवस्थाकों प्राप्त होकर यह उस नगरकों छोट्कर पासके श्रीनिवास नामक प्राममें लाकर गहने खगा । का भी र कि युरेदिन आनेपर राजाका स्टटफा भी सपनेदी कमेचास्यिकि धर चोरी करता है, व्यापारी म्डोली लेकर दसरेके मालफी फेरी करते, प्राह्मण मध्व मायने हूँ, यन्य जाति धघाले दूस रोफि दीस वन जाते हैं, मजी घर; गने दथ घाते ¢ नच लोग घर-घर सी माँगते दोय र, फिसान दूसरेका नट जोतते ६ भीर स्पर्यां चरा फातकर दिन वित्राती ई। उस गाँचमें पहुंचकर चद किसी ज़मानेमें सेठ कद्दलानेवाला व्यक्ति कन्ेपर कपट्ोंका गट्टर लादे हुए कपट्रेकी फेरी करता ४ शि




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