प्राक कथन | Prak - Kathan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(>> # अ 0०4. <+ (भ श~ 3. न ॐ, ~< „०० ~~ (क कर स्त्री 1 कर परी £ . ५। तंह सु । . . . जाथाक्तों का इतिहास. 5 ¢ 1 | पूव-खणड | | हि ५ न 130>= <+ , ( ^ । १) 4 ३ = धि ५ कु । , श्रथ खस्थाय देवाय, नित्याय हृत पाप्मने। | | ५ व्यक्त कम विभागाय, चैतन्य उ्थोतिषे नमः ॥ रु ३. . „ ९ ्‌ १. | उस प्रकाशमान चैतन्य देव को नम्र, जो अपने आमे स्थितं ¦ है, सदेव रहता है, निष्याप है और कम विभाग से बुर्लित है॥ || ं ~ 1 रु धि, ~ ष ¢ $ == जे | | प्राच्‌ वृत्तान्त । 1 1 (१) इस समय शटि मेँ जितने + नाम, काम, वणं, मेद्‌, आयुष्य ओर ¦ 1 ~~ | <<* ज प ००० न~र प्रकार के प्राणी और पदार्थ दीख रहे | स्थान झादि नियत कर दिये। (ये बाते | (0 | जो में मेहो हुई हैं) । अन्धेरा था। उसी मं शटि . „ 1 अपने महत्ततवादि के द्वारा शक्ति परगट | (२) पूर्वोक्त प्रकार की खट $ उसमे | अनेकों देश, दवीप--अ्रर खणडो । की और जल उत्पन्न करके उसमें ? ए म शक्तिरूप ते + “भारतवष पवित्र माना गया द्‌ । ! ॥ बीज बो दिया । उससे ¦ #/ 1 † ब्रह्माजी परगर हए । उन्होने उक्त बीज | इसमे वणौ श्रम धम ती र्‌ धा 1 | + के दो इकडे करके ऊपर के माग में | है । तपोधन सदू्षियां ते इसम्‌ (चार | | (स्लोकः नीचे के भाग से (भूलोकः { वं (त्राह्मण, तर, वैशय श्र | 1 और मध्य भाग में 'आकाश' बनाकर 1 और “चार. झाश्रम (ज्रहचय, एहस्थ, । | ससार के सम्भ प्राणी ओर पदायै । वानप्रस्थ-और सन्यस्त ) स्थापन करके | 1 यथा क्रम उत्पन्न किये । और उनके ६ इनके जद -जदे धमक ओर वहार | न




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