लोक परलोक का सुधार | Lok Parlok Ka Sudhar
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भोग, मोकझ गौर प्रेम सभी के टिये भजन दी फरना चादिये ५
म यही सिति होती है, जिससे उसकी कामनाफा शीज ही दग्घ हों
जाता ३ । इतढिये किसी भी हेतुमे भजन करना चादिये । आप
भजन करते हें--यह आपका परम सोभाग्य है---
(भार्ये कुमायें अन्य नालम ।
नाम जपत मगल द्वति दमु ॥
मजने यथायाक्ति निष्काम तया प्रमस्ना भाव चढ़ारयें | अपनी
भूर्धोकौ देखते रहिये तथा भगप्रानूकौ असीम कृपाका अनुभव करने
हए भजन्मे समन रहिये । भजन अपने-आप ही सव काम कर
देगा | जप भगवत्कृपा |
----न3>--भ-्--
(२)
भोग, सोच ओर प्रेम सथीके लिये भजन ही करना चाहिये
सप्रेम हरिप्तरण | भाई । सव्रके लिये यही एक नियम तो
नर्द है पस्तु भगवककृपाका यह भी एक तरीका अवय है | वे
जिसपर कृपा करते हैं उसे दु खका अमोघ दान दिया करते हैं |
उसका धन हरण करते हैं, मान घटा देते हैं एव बन्घुरओं और
मित्रोभिं उसके प्रति घरणा या उपेक्षाकी दृत्ति उत्पन्न हो जाती है |
असम संसारके खुखों ओर भोरगोंकी त्रिगाठ इमारतें उयों-ज्यों ढहती
हैं, त्यॉ-ही-त्यों वह ससारके बन्घनसे मुक्त दोकर प्रमुकी ओर बढ़ता
है । अपनी ओर खींचनेके लिये दी प्रभु उसे दु'खका दान दिया
करते हैं । एक भक्त वग-कविंने भगवान्की सूक्ति कह्दी है ---
जे करे मारि आन्य । तोर करि स्ननादा ॥
तबु जे छाड़े ना आदा । तॉरे करि दासानुदास ॥
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