लोक परलोक का सुधार | Lok Parlok Ka Sudhar

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Book Image : लोक परलोक का सुधार - Lok Parlok Ka Sudhar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भोग, मोकझ गौर प्रेम सभी के टिये भजन दी फरना चादिये ५ म यही सिति होती है, जिससे उसकी कामनाफा शीज ही दग्घ हों जाता ३ । इतढिये किसी भी हेतुमे भजन करना चादिये । आप भजन करते हें--यह आपका परम सोभाग्य है--- (भार्ये कुमायें अन्य नालम । नाम जपत मगल द्वति दमु ॥ मजने यथायाक्ति निष्काम तया प्रमस्ना भाव चढ़ारयें | अपनी भूर्धोकौ देखते रहिये तथा भगप्रानूकौ असीम कृपाका अनुभव करने हए भजन्मे समन रहिये । भजन अपने-आप ही सव काम कर देगा | जप भगवत्कृपा | ----न3>--भ-्-- (२) भोग, सोच ओर प्रेम सथीके लिये भजन ही करना चाहिये सप्रेम हरिप्तरण | भाई । सव्रके लिये यही एक नियम तो नर्द है पस्तु भगवककृपाका यह भी एक तरीका अवय है | वे जिसपर कृपा करते हैं उसे दु खका अमोघ दान दिया करते हैं | उसका धन हरण करते हैं, मान घटा देते हैं एव बन्घुरओं और मित्रोभिं उसके प्रति घरणा या उपेक्षाकी दृत्ति उत्पन्न हो जाती है | असम संसारके खुखों ओर भोरगोंकी त्रिगाठ इमारतें उयों-ज्यों ढहती हैं, त्यॉ-ही-त्यों वह ससारके बन्घनसे मुक्त दोकर प्रमुकी ओर बढ़ता है । अपनी ओर खींचनेके लिये दी प्रभु उसे दु'खका दान दिया करते हैं । एक भक्त वग-कविंने भगवान्‌की सूक्ति कह्दी है --- जे करे मारि आन्य । तोर करि स्ननादा ॥ तबु जे छाड़े ना आदा । तॉरे करि दासानुदास ॥




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