नीतिकथा का उद्गम एवं विकास | Nitikatha Ka Udgam Evam Vikas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
414
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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फिर भी ऐसी कहानी या किस्से का कथानक किसो मानव की तथ्यपूर्ण घटना
या हकीकत ही हो सकती है। पात्र मानवीय होने के कारण ऐसी कहानो में
मानवोचित मनोवैज्ञानिक [सूदम चरित्रचितवण किया जा सकता है । कहानी में,.
जिसे पश्चिम में 5107 5६01४ कहा जाता है, जो पात्र ब्रात ह, वे सौधे मानद-
समाज से लिए जाते है । वह सत्यकथा हू । यद्यपि उनके नाम एवं स्थल
काल्पनिक ही होते है, फिर भी वह कल्पना का क्षेत्र सीमित हो रहता हैं ।'
नोतिका में जो पात्र भ्राते है वे कल्पनाशक्ति से हो 'कल्पित' किये जाते हैं,
क्योंकि वे मानवेत्र प्राणी मानव जैसा व्यवहार करते दिखाई देते ह* । वैदिक
साहित्य से लेकर लौकिक संस्कृत साहित्य के ग्रान्तम समय तक जितनी माचव-
पात्राधारित कथाएँ लिखों गई हैं, उनके पात्र मानवोय हाने के कारण उनमें
प्रत्यक्ष कथन प्रसाली ( व्ल ्लौपतत ज पथा ) 8 हो काम लिया
गया है । किन्तु नीतिकुधाओं में नेकं का ग्रप्रत्यत्त कथनभ्रणाली ( आतव
पा[0त ० एप ) से क्नयना नोतितत्व सुचित करना पड़ता है !
वस्तुत: नीतिशास्त्र के श्राचार्य करे नोतिशास्त्र की शिक्षा को प्रमावशोल
बनाने में श्रसमर्थ हो रहे होगे । श्रोता था पाठकों पर सीधा उपदेश देन-
मात्र से प्रभीप्ट प्रभाव नहीं पड़ता । श्रतएव उन्होंने कहानीकार का चोला
पहनकर उस नोति के उपदेश में दृष्टांतो का समावेश कर दिया । इस श्रप्रत्यक्ष
प्रणाली से दोनों वाते वन गई । किसी के वैंगक्तिक जोवन पर प्रत्यक्ष सूप से
हमला भी नहीं हुमा श्ौर अभिव्यक्ति के चमत्कार से उसमें झाक्पण शी
श्रा गया।
एमी केनो श्नन्य दृष्ट न्त-कथाष्रो ( 22788165 ) से सिन्त हो थो, यद्यपि
पशुपक्तियों के दृष्टांत रूप पान्न उसमें भो रहते श्रये है) दृष्टान्त-कथा में जो
धर्मप्रचार की दिशपतता रहा करती है, उससे सर्वथा मुक्त यह नीतिक्था
मानवोय पात्रों से विरहित होकर ही मान की दुष्प्रदृत्ति एवं कुवासना का
नि
भरन्त करन के हतु प्रभावशीक्त हो सक्तो ।
1
नीति-तत्व-विशारद जीवन की गहराई को ठोक सोच समझ लेता है; चहं
भानव द्वारा हीन समझे गये पशुपलियों की पट कथाएँ सुना कर, उसे इन
|
उपेक्षित प्राशियों से भो कुछ शिक्षा ग्रहण करने की चमत्कारपूर्ण अम्यर्थना
र. हेमचंद्र हारा परिशिष्ट पर्वं (३, १८६-२१२ ) से कट्पितकषथा' इस
शब्द का भी प्रयोग किया गया है, जिससे सत्यकया से नाल्पनिक क
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न्नता स्पप्ट हो जाती है ।
2
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