भारत का वैधानिक एवं राष्ट्रीय विकास | Bharat Ka Vaidhanik Avam Rashtriya Vikas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
361
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गुरूमुख निहाल सिंह - Gurumukh Nihal Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ब्िरनवासियों का मागसन द
कौ अतूमति मिलन पर 1 कितु नई कयन २०लाखे पौंड उबार देन को प्रस्तुत थौ ॥
माण्टगु को इतन की ही आवश्यकता था । पर नई कम्पनी बी ब्याज की दर ८
प्रातःन श्री। पालियामन म व्रि रखा गया जिसके अनुसार सरकार के छिए
२० लव पीड ऋण की माँग की गई । उसके वदले म ऋण देन बाला वो पूर्वी
शीप समूह के साथ व्यापार करन का एकाबिपय था । ^ पुरानो कम्पनी क,
उत्तकं अधिकार पतच के अनसार ३ वध अयात कितम्बरे १७०१ तक समय देना
या। जव पुरानी कम्पना न यह् अनुभव किया कि एकाधिपय और किसी प्रकार
नहीं बच सकता ता व८ सारी रकम का प्रवव वरन के लिए तयार हई किन्तु
यह प्रस्ताव देर स आया । नई कम्पनी को एकधियत्य देन बाला दिल पाछिया
मट के दाना भवना से स्वीदत हो गया और जुलाई १६९८ मे उस राजकीय
स्वीढृति मिल गई ।
सन् १६९८ के एकल न ऋण देन वाला को इस बात की स्वतत्रता दी
किवे अपनी पूजी के परिमाण के अन्तगत अलग-अलग अथवा राजकीय
लविकार-पत्र के अधान* सजुक्त रूप से व्यापार कर सक्तेह्) अधिका
न पिछली वात का पसद क्या और परिणामत ५ सितम्बर १६९८ को
शाही अधिकार पत्र दारा दी इगलिग कम्पनी ट्रडिग दि ईस्ट इडोज नाम
की नई कापनी वनी । उसका प्रवव २४ डाइरेरो को सौपा गया 1
य लोग अपन म से ही एक अध्यक्ष (चेयरमन) और एक उपाध्यक्ष निपुक्त
नरते । इस सम्वव मे एक ध्यान देन की दात यह हू कि पहली कम्पनी की
तरह इस कम्पनी के लिए कोई पयक प्रवेग पुस्क नहीं था 15
सन् १६९८ के एक वन जान वै फरस्वरूप दोनो कम्पनियो भम पातक
प्रतिद्वाद्विता हुई जिसम सचाई के साथ व्यापार करन के सारे नियमों की
अवहलना की गई। पुरानी वम्पनी को अनुभव था और साथ ही नई कम्पनी
में कुछ स्वाय भी था + कारण यह था कि भविष्य के लिए सुरक्षा की दृष्ति
से पुरानी कम्पनी न नई कम्पनी की २० लाख पौड की पूजाम दे १५०००
पौड दिये थ। दूसरी आर सन १७०१ म पुरानी कम्पनी के बन्द होते तक
नई वम्पना प्रतीक्षा कर सकती थी! किन्तु इतौ वोच स्थिति बड़ी विकट
१. प०जटा एधिघफृष्लि 1४, एा्िणतेडुट छिएड(णए 0 िपें।8,
एण ४, 285 98 99
२ [एल प्राणाय इषाण, 26 28
३ (एण्शला (वलः [+ (दगााएपापहटुट पाप्य ण 1ता2,
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