एक और वापसी | Ek Aur Vapasi

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Ek Aur Vapasi by देवेन्द्र उपाध्याय - Devendra Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घरमे खाना हैया कही बाहर ? दाहर चलना है तो झटपट तैयार हो लो । अपने पास बहुत वक्‍त है। --नही, सब घर में हो छाएँगे। कितने दिन हो गए हैं इकट्ठा खाना खाए! शाम कौ नरन उदास मन से लोट आया । जैसे किसी पिंजरे मे कैद होने के लिए आया हो । नीता बच्चों को साथ लेकर कही गई थी । उसे थोडी-सी राहत मिली । नौकर ते वताया--“मेम साहव गाडी लेकर गई है 1 कदत घी देर से लौटेंगी ।” वहू तमिक आश्वस्त होकर बिस्तर पर पसर गया उसने काफी मंगाई ओर नौकर को रात का खाना बनाने के लिए कह दिया । यह्‌ भय फटी जाना नहीं चाहता था । जो सुखद क्षणों की अनुभूतियाँ उराके रथ थीं, उन्हें सेजोकर रखना चाहता था। नीता से शादी के बाद दो सात में हो दो बच्चे हो गए थे । यहू भहपी इस काम से मुक्त होना चाहती थी । मुफ्त समाज मे जाने के पिए ष पूरौ तरह मुक्त हो गई थी । पर नरेन उस समाज में जाने से कतराता था । उसके सस्कार नीता के साथ चिपके हुए थे । नीता फा रात देर तक यसम में बैठकर पेग पर पेग चढाना और फिर बहुकना उसे अच्छा नही लगता था। पर उससे कुछ कहने की हिम्मत भी नहीं थी उसकी | नशे मे धुत्त चहू आधी-आधी रात को लौटती । एक बार नीता से उसने कहा तो वह बिफर उठी थी-- तुम अगर गवार ही बने रहना चाहते हो तो बने रहो, पर मुझे तुम रोक नहीं सकते | मैं तुम्हारी खरीदी बाँदी नहीं हूं ।” इसके बाद से उसने कुछ भी कहना छोड़ दिया था। पहले बहू काफी - हाउस की रौनक होता था--अपने को भुलाते के लिए, विन्तु सधे हे काफी-हाउस जाना भी छूट चुका था 1 जव तो वह्‌ परषदटे परिम्दे ष) ११४ एक ही निश्चित दायरे से ज्यादा उड़ नहीं सकता,यावल् गा ” रात खाना खाकर वह लेट गया! नीता मोदसे दिनि. भन आए। तभी अचानक उसके सीने में दर्द उठा । ८ यह १४ 1 ११२११ * अपना गे * ड




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