प्रेमचन्द का नारी - चित्रण | Premachand Ka Nari - Chitran
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
437
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रेमचंद-युग से नारी की स्थिति
भूमिका भँ हमने वैदिक युग से श्वौ सदी क॑ प्रारम्म तक की मारतीय नारी की
स्थिति का, उसकी कारणभूव राजनैतिक, सामाजिक यौर धार्मिक भदृत्तियों का विद्रण
सतुत क्या है। हमने देखा है कि श्रेमचन्द युग क इुछ पूर्व मारदीय नारी, यवाद
स्वरुप कुछ स्त्रियों को छाडकर, अशिक्षित, पराधीन और पर्दानशीन थी । वह धर की
नचहारदीवारी में कद और वैवाहिक रीठियों तथा सती प्रथा का शिकार थी। वह सतीत
कं एकामी आदर्श के पालन के लिए वाश्य थी । यह भी कहा जा चुका है कि यह सब
होते हुए भी स्त्री और पुरुष दाना को, उत्तराधिकार कं रूप मे, ५००० वरप पुरानी सन्यवा
वी संपत्ति मिली थी और ऊपर से दीन हीन, भाले भाले, गुलाम-दृत्ति वाले मारतीयों के
अद्र एक ऐसी शक्ति छिपी हुई थी, जो यावरिक ऐश्वर्य का सूचक थी ।* इस दृष्टि से
भारतीय नारी पुरुष से भी यागे कही जा सकती है, क्योंकि बह पुरुष वी जपेक्षा अधिक
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