राजनय के सिद्धान्त | Rajanay Ke Siddhant

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Rajanay Ke Siddhant by हरिश्चन्द्र शर्मा -Harishchandra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राज्य का छन्न स्वरुप ।िकास लक्ष्य एफ कार्य 7 और विदेश नीति पर अप्याय 13 और राजनय तथा अन्तर्राष्ट्रीय काठून पर अध्याय 7 में पृथक सै दिधार किया गया है अत यहाँ सॉकेतिक विवेधना पर्याप्त होगी | अनेक विधारक और लेखक मनमाने रूप से राजनेय शब्द.का प्रयोग विदेश नीति बनाने और क्रियान्पित करने के लिए करवे हैं जो अनुचित है । विदेश नीति और राजनव राष्ट्र की बाह्य व्यवस्थाओं से सम्बन्धित नीति के वे पहिये हैं जिनकी सहायता से अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति चलती है लेकिन दोनों एक दूसरे के पर्याय नहीं हैं । राजनय किरी भी देश की विदेश नीति कौ कार्यान्वित करने की प्रक्रिया और दिदेश डीति के लक्ष्यों की प्राप्ति का साधन मात्र है । रार दिक्टर वेलेजली {517 ४८107 ५/९1९5९)) के कथनानुसारं राजनय भीति नही & वरन्‌ हरो क्रियाग्वित करने दाला अधिकरण है । दोनो एक दूरे के पूरक हैं क्योंकि एक के बिना दूसरा कार्य नहीं कर सकेता । राजनय फा विदेश नीति से पृथक कोई अस्तित्व नहीं है वरन्‌ ये दोनों मिलकर कार्यपालिका की नीति निर्धारि करते हैं । विदेश नीति द्वारा रणनीति तय की जाती है और कूटनीति द्वारा तकनीके तय की जाती है ।' विदेश नीति वैदेशिक सम्बन्धों की आत्मा है और राजनय दह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दिदेश नीति कौ सचातिते किया जाता है । राजनय्ञों द्वारा अपनी सरकारों की विदेश नीति के सिद्धान्त निर्पारित नहीं किए जाते किन्तु वे अपने प्रतिवेदनों द्वारा इस नीति की रघना में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं । विदेश नीति त्तय करते समय राजनयज्ञों के प्रतिवेदनों को सदैवं षी मूल्यवान कष्या माल समक्ञा जाता है 2 पामर तथा परकिन्स के कथनानुसार *'राजनय दह सेवी दर्ग और थन्त्र प्रस्तुत करता है जिसके द्वारा विदेश नीति को क्रियान्वितं किया जाता है । इममें एक मूल तत्व है और दूसरा प्रणाली है हे हेरल्ड निकल्सन ने वियना कप्रेस सम्बन्धी अपनी रधनां विदेश नीति एव राजनय के मध्य स्थित सम्बन्ध पर प्रकाश डाला है । उनके मतानुसार दौनों का सम्बन्ध राष्ट्रीय हितों का अन्तर्राष्ट्रीय हितों के साथ समायोजन से है | विदेश नीति राष्ट्रीय आवश्यकताओं की 'एक सामान्य पारणा पर निर्मर है । दूसरी ओर राजनय एक लक्ष्य नहीं है दरन्‌ साधन है उद्देश्य नहीं है वरनू एक त्तरीका है । यह बुद्धि समझौता दार्ता एवं हिरतो के आदान प्रदाने द्वारा सम्प्रमु राज्यों के बीच सपर्ष होने से रोकता है । यह एक एसा अधिकरण है जिसके माध्यम से विदेश नीति युद्ध के अलावा अन्य साधनों से अपना लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास करती है । राजनय शान्ति का साधन है | जब समझौता करना असम्मव बन जाता है तौ राजनय निष्क्य बन जाती £ ओर अकेली विदेश नीति कार्यरत रहती है ।* उपर्युक्त विवेधन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि विदेश नीति ओर राजनेय कौ समानार्था रुव मे समझना गलत है । इन दौर्नों मैं आघारमूत अन्तर है । जहाँ विदेशनीति साध्य है राजनय उसका सापन है । लेविन दोनों में आपस मैं विरोध की स्थिति नहीं हैं अपितु एक दूसरे के पूरक हैं | 1. प्रजा हब 0 फॉज्ताइट/ पा निफिटाड 9 30 2. 2 कह एक 1. हैताटा।टप सिर ्वा उहाचाल्ट ए 9 4 णन चानिलं एतम्भव्तो दरदो 7. 92. 4 1१2००१4९८०२०५ शष्ट (जाहु ० $ष्टतद = 51४४ प काव पापः 1812 22 ए 164




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