मजदूरी | Majaduri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
175
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4 मजदूरी
श्रमिक एक' प्रकार मे स्वय श्रपना नियोक्ता हाता है जौ अपनी वस्तु का निर्माण
करता है और उसे बेचना मी है गौर इस प्रकार श्पन सरण-पोपण तथा माल की
लायन के अतिरिक्त जा दध मौ वचना है वह् ब्रतिरेक झथदा “शुद्ध श्राय” के रूप में
स्वय रख नेता है ।
3 मजहूरी प्रणाली को विशेषताएं --यदि हम इन तीनों प्रयालियो वी
परस्पर ग्रौर झाधुनिक सजदूरी-प्रसाली से तुलना करें तो जात होगा कि इनकी
भिन्नता का एक सद्रवपूर्ण पहलू श्रमिक को प्राप्त होने वाली काथिक स्वतन्त्रता की
सीमा फी श्रससानता है जो स्वय उस सम्बन्ध पर निर्मर करती है जो झाधिक
सम्पत्ति से वह रखता है-र्थान क्या बह स्वय सम्पत्ति का स्वामी है या नही है
अथवा वह स्वय अपने स्वामी के अ्रघीन सम्पत्ति का एक झग मात्र है । मनुष्यों के
बीच -सामा जिक समूहों श्रथवा वर्गों के बीच --सम्वन्धों को प्रकृति सम्पत्ति-मम्वन्धी
अधिकारों के स्वरूप से निर्धारित होती है । दामदृत्ति श्रथवा कृषि-दासवृत्ति दोनों के
अ्रन्तमंत्त श्रमिक की स्वतन्त्रता कानून द्वारा परिसीमित होती है « दामवृत्ति के
अन्तर्गत वह पुर्ण रूप से स्वामी के आाधीन होता है झ्ौर क्ृपि-दासवृत्ति के अन्तर्गत
उसकी स्वतन्त्रता बस्तुत स्वामी के लिए विशिष्ट सेवाभ्मौ को सम्पन्न वरने के दायित्व
द्वारा सकुचित हो जाती है । किन्तु मजदूरी-प्रसाली के ध्स्तगंत श्रमिक इस प्रकार के
कानूनी बन्धनों के पाश में बधा हुआ नहीं होता है। काछून की हृष्टि मे बहू स्वय
अपना स्वामी होता है । ्रपनी इच्छानुसार कम करने अथवद यदि वट् दातो एकः
स्वतन्न कारौगर् की माति भ्रपना काम करने के लिषए पूर स्वतन्न होता है) चूमि
पूजीपति जोकि एक वकंशाप या फंक्टरी श्रथवा खेत का स्वामी होता है ऐसी
दणामे श्रनिवायं श्रम प्राप्त करने वा श्रधिकार नदी रषता--रम्परागत श्रधिकार
कद्वारा अथवा खरीद के ढारा--श्रत वह बाजार माव पर मूल्य चुका कर श्रमिक
के समय को किराए पर लने के लिये वाध्य होता है तथा इस प्रकार दी जाने वाली
मजदूरी एवं बचे जाने बाते यार माल से प्राप्त मूल्य के स्तर के द्वारा सपना
मुनाफा कमाता है । इतिहास हमें वताता है कि श्रमिक की स्वाघीनता पर से समस्त
कानूनी प्रतिवन्धा की समाप्ति मजदूरी प्रणाली के विकास के दिए प्राय एक प्रम्चिस
शर्तें मानी गई है ।
4. धार्धिक स्वतन्त्रता--एक शताब्दी पुर्द के सस्यापक ग्र्यणाश्ती देवन यह
मी संत्ताप चर लेते थे कि जहा पूर्वकालीन प्रणालियों से प्रचित वाध्यता थी उसका
स्थान पर मजदूरी प्रखाती स्वत्तत्तता पर अधिक बल दसी है। सजदूरी-प्रसाती गे
इमे निवतिवादो ससार मे ययामम्मय अधिकाधिक स्वनन्केता प्राप्त वी । यह स्पतस्त
कारीगर की प्रणाली के समान स्वाघोन होने के साथ-साथ उससे कही श्रधिव कार्य
कुशल है! यद् ठक है कि मजदूरी पाते वाला श्रमिक अपने नियोक्ता के निरीक्षक
(प्रोवरसौरर) के श्रनुजासन के अधीन फैक्टरी मे कुछ घटे वा वरने दे लिये बाध्य
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