ज्योति - पुरुष | Jyoti Purush
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
475
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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छांतिस.य वहं
-- सुनित्रानर्दन पन्त
कहते, सूरज भ्रस्त हौ गया !
सूरज कभी न उदय-ग्रस्त होता प्रिय वच्चो,
उसका उदय ग्रनन्त उदय है--
नए-नए ब्ररणोदय लाता वह् भू-पथ पर,
नई सुनहली किरण विचेर नए क्षितिजे!
सूरज श्रस्त नहीं होता है !
महापुरुप भी कभी नहीं मरते
त्रियं वच्चो
मत्यु-द्वार कर पार अमर वन जाते हैं वह
भ्रौर युगे तक जीवित रहते जन गण मन में !
मृत्यु गुहाके प्र॑धकारका हारपार कर
भ्रगणित सूर्यो का यह कौन सूये हंसता श्रव ?-
भारत के ग्राकाश दीप में !--
युग जीवन का नव प्रभात ला
भू अगन पर्!
उद्दित हुश्रा स्वातंत्यसुयनव
स्वणिम किरणों का जगमग
टंग गया चंदोवा नील मुक्ति पर !
वह श्रमरत्व भरो तन की रज
वरस रहौ श्रव चिद् अंब्रर से घरा घूलि पर--
गिरि शिखरों, सर-सरिताग्रों-सागर-लहरों से
खेल रदी वह-
लोट रही भू के खेतों में
ध्न ~
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