मुद्रा एवं अधिकोषणा | Money And Banking
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
433
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)^ मुद्रा एवं भघिकोपण
जिएके पास दूसरे व्यक्ति की इच्छित वस्तु हो भर जिसे उसकी श्रनावश्यक वस्तु वी
श्रावर्यकता हो ।
(३) विनिमय के क्षेत्र का संकुचित होना--यदि विनिमय का कत्र सीमित है
(जैसे एक गाँव में ही श्रावइयकता की सब चस्तुएं बनाई जाती है), तो वर्तुप्रों की
श्रदला-वदली करने के इच्छुक लोगों को यह ज्ञात करना सरल होता है कि कौन क्या
वस्तु बनाता है श्रौर उसे किस वस्तु की श्रावदयक्तादै। यद् जानकारी होने से
बस्तु-विभिमय एक सरल कार्य वन जाता है । श्रावश्यकताम्रों के दोहरे संयोग के लिए
बहुत नटी भटक्ना पड़ता ।
(3) सप्राज का पिद्ड़ा होना--पिछडे हुए समाजों में ही विनिमय के एक
सर्व-स्वीवायं माध्यम (म्रात् मुद्दा) का श्रमाव होता है । यदि यह होता भी है तो
सोग इसके अधिक प्रयोग के ग्रादी नहीं होते, जिससे ये श्रपना वास वस्तु विनिमय के
द्वारा ही पूरा किया करते हैं । लेकिन जब मुद्रा का चलन हो जाता है, तो इसी
सहायता से विनिमय में बड़ी सरलता रहती है । फलतः लोग वस्तु विनिमय छोड़ वर
मुद्ा-विनिमय करने लगते हैं ।
आधुनिक युग में वस्तु-विनिमय प्रथा का स्थान
ऊपर जो कुछ भी कहा गया है उसमे यह नदी समभाना चाहिये कि वस्तु-विनि-
मय प्रथा श्राज दुनियाँ से पूर्णतः मिट 'चुरी है । वास्तव में वस्तु-विनिमय प्रथा 'प्रय
विश्व कै उन भागो में प्रचलित है जहाँ सम्यदा के सूर्य का प्रकाश ग्रभी नहीं फैला है,
लोग सीधा-साधा जीवन व्यतीत करते हैं । उनकी झावश्यकताएँ थोड़ी हैं श्रौर श्रावा०
गमन के साधनो ककम केः कारण विनिमय का क्षेत्र केवल गाँव की चहारदीवारी
तक ही सीमित है । श्रतेक भारतीय गाँवों में श्रव भी नाई, कुरहार श्रादि को उनती
सेवा के बदले में मुद्रा न देकर 'फमल के समय पर पैदावार मे से कुछ भाग दे दिया
जाता है । स्वरोमान च श्रन्तदोने के वाद विश्व के विभिन्न देशों में भी वस्तु परि-
बर्तन प्रया के झाधार पर ही व्यापार होने लगता है । जैंसे--ग्रमेरिका भारत से चीनी
खरीदता है श्रौर बदले में मशीनें इत्यादि देता है। [हाल ही में भारत ने इग प्रकार
कै श्रते दविपक्नीम व्परापरार पमभ्योते (87121621 1१302 7८01) विभिप्र
देशों से बिये हैं] इसका कारण यह है कि एक देश की मुद्दा दूसरे देश में स्वीकार
नहीं की जाती तथा स्वणुं जो कि सर स्थानों में स्वीकार किया. जाता है, केवल कुछ
ही 1 के पास पर्याप्त मात्रा में है। ससार के देशों मे इसका बहुत श्रसमान वितरण
हुप्रा है ।
परोक्षा प्रद
(१) वस्तु-विनिमय प्रणाली के दोपों की व्याट्या कीजिये । मुद्रा दे प्रयोग
से ये कंमे दूर हुये ? डी
ही (२) “वस्तु परिवर्तेन प्रथा (84205) की परिभाषा कीजिए तथा इसकी
झमुविधायों की समाइये । दब्य के प्रयोग द्वारा ये श्रमुविधाएँ कसे हृदाई जा सकती
हैं ? करा बल्तू परिवर्तन प्रथा आन पु्त मिट डुदी है? `
॥ ^) बस्तु विनिमय को संनव बनाने वावी दगाग्नौ का उत्नेष कीभिये।
षपति म £ ट दप कर प्ट चप्त्तदौ 2
४} निनिमयमेव्या श्रभिप्राय है? दृग्वेदो स्वल्प कौन-कौन
वस्तु विनिमय से कया लाग हैं ? (+:
User Reviews
No Reviews | Add Yours...