भागवत दर्शन (भाग 21) | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 21 ]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्रहवाद्‌ पर दसिंह भगवान्‌ की .झनुकम्पा १६. जिसने जिसे अपने अनन्य प्रेमसे भक्तिभावे से प्रकट. उसके ' यर्थाथं रहस्य को नहीं जानता है पिता कितना ' भी पित हो फिर भी पिता दी है । सिंह सब पर क्रोध करता है किन्तु श्रपने वचो को हृदय से चिपटाता ह । सिंह से सभी डरते दह किन्तु सिह का वच्या उससे तनिक भी भयभीत नहीं होता । बिल्‍ला चूहों का मुंद में ले जाती है, उसी तरह उसी सुख में '्रपने बच्चों को भी उठाकर ले जाती है। चूहे उसके मुँह में पड़ते दी तड़फड़ाने लगते हैं, भयभीत होकर थर थर काँपने लगते हैं, किन्तु उसके बच्चों ८चों को कोई चिन्ता नहीं, कोई दुख नहीं, शोक नहीं, भय नहीं । कारण यही है कि बच्चों को विश्वास दै यह्‌ हमारी माता है, इससे हमारा श्रनिष्ट कुकी हो नहीं सकता । इसके विपरीत चूहै उसे श्चपनी धात्‌ करने वाली , सममते है, उनकी चद धारणा है यह हमै मार डालेगी खाजायगी । भावना ष्ठी फलवती होत -है, जनादन ' भाव -प्रादी दै । -जाकी जैसी भावना होती टै ताको तैसी दही सिद्धि प्राप्त होती धमराज युधिष्ठिर से -नारदजी कह रहे. दै--“राजन ~देव- गण. सिंहासनस्य नर्‌ हरि प्रमु की दूर से खड़े खड़े स्तुति तो कर रे थे, किन्तु भयके कार्ण कोई. श्ागे नदीं बढ़ते थे। सब देवताश्च -ने -बरह्माजी से कदा-~प्रभो ! छाप दी, सबके अयणी ह, पद्िले श्राप ही भगवान्‌ ` के पाद्पद्मो को स्पशं करे। यह्‌ सुनकर बर्ाजी, सयको ,डॉँटते हुए वोले--'“तुम लोग कैसा.खनम्याय कर रदे दो, एसे समय युवकों - को ,ागे बढ़ना श्वाय | ब्रह्माजी -की -देसी घात सुनकर देवतानां ने . शिवजी से




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