कवि प्रिया | Kavi Priya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 ( ५ ) ५ तिनपर चढ़िआये जे रिपु, केशव गये ते दवारि ! जिसप्रर ढ़ 'ापुन गये, श्ाये तिनहि सहारि ।।९३॥। सवलशाह अकवर चनि जीतिलट दिशि चारि। सघुकरमादि नरेश गदु, तिन के लन्द्‌ सारि 11२४। खान गनै सुल्तान को, राजञा रावत्त॒ वाद्‌ । हारो मघुकरसाहि सो, मापन सादिसुराद्‌ ।२५॥ साध्यो स्वारथ सायद्री, परमारथ सो नेह । गये सो प्रु वेकंटमग, बह्मरन्ध तजि टे ॥२६॥ तिनके दूलदराम सुत्त, लहुरे दहदारिलराड } रिपुखण्डन कुलमण्डनें, पूरण पुदुमि प्रमाड 1२] रनरूरो नरसिंह पुनि. रननमेनि सुनि इश !. वध्यो श्रापु जलालदी. वानो जाके शीश ॥र८॥। इन्द्रलीत, रण्एलीत पुनि, शरुलीत चल्लवीर \ चिरसिह देव प्रसिद्ध पुनि, दरिसिहो रणधीर 1\२€॥ मघुकरसाष् नरश कं, इतने भय कुमार्‌) रामसिद राजा भय, तिन के चुद्धि उदार ॥३०॥। घर बाहर वरणद्टि तहाँ,” केशव देश विदेश 1 सच काद युद्दे कटै जीते रास नरेश ॥३१॥ रामसाहि सो ' शुरता, धमं न. पूजै रान ज्ञाहि सराइत सबंदा, अकवर सो सुलतान ॥३२॥ .करे जारे खे तर्द, आठ दिशि के इश, ताहि. तरा वैठ्क दियो श्रकवर सो श्र॑वनीश ॥३३॥ जके दरशन को गय, उघरे देव किरि । _ इपयी दीपिः दीप की, टेखति एकदियार २४ ता राजा के राज अव, राजत जगती माद्‌! राजा, राना, रउ सव, सोवतत जाकी छद ॥३५॥




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