रूस की चिट्ठी | Roos Ki Chitthi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)& खूसकी चिट्ठी:
होता है कि मानो अवकाश-भोगी समान यहाँसे सदाके छिए
विदा हो गया है। सभी-कोई अपने हाथ-पेरोंसे काम-घंधा करके
जिन्दगी वित्ताते दैः वावूगीरीको पाल्शि कीं दै ही नहीं।
डा० पेटोव नामक एक सज्ननके धर जनिका काम पड़ा, वे यहाँके एक
प्रतिधिति आदमी हैः अचि सोहदेंदार । जिस भकानमे उनका
दफ्तर है, वह पहले एक रईसका मकान था, पर घरमे असवा
बहुत हौ कम ओर सजाबटकी तो चू तक नही--विना कार्पेटके
फरीपर एकं कोनेमे मामूलोसी एक टेविर दै, संकषेपमे पिषटरवियोगमे
नाई-घोची-चजित मशोच-दुशाका-सा खूखा-रूखा भाव दे-जैसे
चाद्दरवाठके सामने सामाजिकत्ताकों रक्षा करनेकी उनको कोई
गरज दही नहीं! मेरे यर्म जो खने-पीनेकी च्यवस्था धी, चह
भन्ड-होटठे नामधारी पान्थावासफे छिए बहुत हो असंगत थी ।
परल्तु इसके लिए कोई संकोच सर्ही--प्योकि सभीकी एक-सी
दशा है।
मुखे सपने वचपनफी वात याद ठी है। सबकी जीवन-
यात्रा जर उसा भायोजन अवकी तुलनमि कितना तुच्छ था;
परत्तु उसफे ट्ष हमे किसके मनमे जरा भी संकोच नहीं
धा; कारण, तमके संसार-यात्राके आदर्शमे वहतं ऊंच-नोचका
भाव नहीं था--सभीके घर एक मामूली-सा चाउ-चलन था--
फरू था सिफ पा्डित्यका, चानी गाने-घजाने आोर लिखने-पटने
आदिका 1 इसके सिंचा छोक्रिक रोतिमे पार्थक्य था; सर्थात्, भाषा,
भाव-भगा आर साचार-विचारगत विशेपत्व था। परन्तु त्वं
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