जीवन प्रभात | Jiivan Prabhaat

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Jiivan Prabhaat by प्रभुदास गांधी - Prabhudas Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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; ३१; मगनलालभाई का जब देहान्त हो गया तब बापूजी ने उनके घर में ही बेंठ कर लिखा था, उसकी विधवा घर के अ्रन्दर सिसक- सिसक कर रो रही हं । उसे क्या पता कि सचमुच तो मे ही विधर बन गयाहू। श्री मगनलालभ।ई का एक छोटा-सा जीवन-चरित्र प्रकारितं हुभ्राहं; किन्तु यथाथं रूप में उनके जीवन का सही-पही चित्रण तो प्रभृदास की इस पुस्तक मे ही हमको मिलता हुं । निःसंदेहं मगनलालभाई बापूजी के हनुमान थे। जो कुछ वापुजी ने करना चाहा वह सब मगनलालभाईने कर दिखाया । गांधीजी ने 'सत्याग्रहु-मराश्रम का इतिहासः मे राष्ट्रीय शिक्षा के लिए जिन सिद्धान्तो को निष्कषं के रूप में बताया है, उसी का वातावरण जान मे या श्ननजान में प्रभदास ने श्रपन इस “जीवन-प्रभात' के अन्दर तादुद रूप से चित्रित किया हैँ । गांधीजी ने स्वयं दक्षिण शभ्रफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास' लिखा हैं। वहां की जेल के अ्रनभव लिखे हु । उनकी भ्रात्मकथा म भी उप्त समय का इतिहास भिल जाता ह्‌। फीनिक्स-ग्राश्रम का बो कुछ प्रंश में उठाने वाले श्री रावजीभाई पटेल ने भी गांधीजी की साधना ग्रौर जीवनना भरणां' नामक दो पुस्तकों मे पर्याप्त सामग्री दी हं श्रौर वह सब बहुत प्रभावोत्पादक दह्‌ । फिर भी कहना पड़ेगा कि उन सब पुस्तकों में कुछ बातें छट गई थीं, जो प्रभदास ने अपने 'जीवन -प्रभात' में दी है। हमें यह महसूस हुए बिना नहीं रहता कि कुछ बातें प्रभदास ही हमें दे सकते थे । प्रभदास ने इस पुस्तक को लिखकर गांधी-यग के इतिहासकारों व गांधी-जीवन के चरित्र-लेखकों में सदा के लिए स्थान पाया है, क्योंकि इसमें मौलिक प्रामाणिक श्रौर प्राध्यात्मिक सामग्री कूट-कूट कर भरी हुई हं । गांधीजी के पुरुषाथं का इतिहास इस पुस्तक मं होने के कारण इसका महत्त्व हे ही, किन्तु केवल साहित्य के रूप मे भी इस पुस्तक ने उत्तम श्रादशं पेदा किया ह्‌ । गांधी-परिवार का श्रावश्यक इतिहास इसमें सुन्दर तरीके से दिया गया ह श्रौर इस प्रकार गांधीजी की श्रात्मकथा में जो न्यूनता रह गई थी वह इसमें पुरी की गई है । भूगोल की बाते श्रौर प्रकृति के साथ घासपात, फल-फल, पक्षियों ग्रौर बादलों के साथ--तदाकार होने के श्रानन्द का जब प्रभदास वणन' करन बठते हे तब तो उनकी लेखनी की सामथ्यं सोलहों कला से प्रकट होती हं । ग्रपने समवयस्क बालकों से श्रौर अ्रपने घर के बड़ों से जो पोषण बाल प्रभुदास को नहीं मिलता था वह उन्होंने प्रकृति के पास से पाया । इसी कारण यह वर्णन-शक्ति इस हद तक उनमें सजीव हो उठी हे । प्रकृति




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