स्वातंत्रयोत्तार हिंदी कविता में लोक संवेदना | Swatantroyottar Hindi Kavita Mein Lok Samvedana

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Swatantroyottar Hindi Kavita Mein Lok Samvedana by सरिता जैन -Sarita Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विशेषताओं को लेकर ही विशिष्ट लोगों की भाषा को चुनौती देती हुई जन-मानस को आन्दोलित करती रहती दै । इसलिए जव साहित्य की सर्जना होती है तो लोक की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। महाभारत, पुराण तथा अन्य लौकिक संस्कृत के ग्रंथों में भी लोक शब्द “स्थान- विशेष व *जन-साधारण' दोनों अर्थो मेँ प्रयुक्त है। “महाभारत” के एक श्लोक में कहा गया है कि अज्ञानान्धकार में “लोक” अर्थात्‌ सामान्य जन विकृत चेष्टाएँ कर रहे थे, किन्तु ज्ञानाजुजन की शलाका से उनके ज्ञान-नेत्र खुल गये ५ यहो ^लोक' शब्द स्पष्टतः “सामान्य ससुप्प' के अर्थ को अभिव्यक्त करता है। “गीता” में कहा गया है कि श्रेष्ठ पुरूष जैसा आधरण करता है, संसार का साधारण मनुष्य भी वैसा ही आचरण करता है, जिस वस्तु को वह प्रमाण मानकर चलता है, संसार उसी का अनुसरण करता है। < य्ह संसार जड होगे के कारण उसमे रने वाले जन का ही द्योतक है क्योंकि जड़ वस्तु अनुसरण नहीं करली । एक अन्य श्लोक में लोक शब्द तीनों लोकों (आकाश, पाताल व मर्त्य) के सन्दर्भ मे प्रयुक्त हे 1 महाकवि कालिदास ने (लोकः शब्द को सामान्य जन या प्रजा-जन के अर्थ नं प्रयुक्त किया हे 2 राम को लोक अर्थात्‌ प्रजा-जन पिता के रूप मेँ मानती धी। कालिदास ने श्थल-स्थल पर लोकः शब्द साधारण जन के अर्थ मे प्रयुक्त किया है। भवभूति ने उतर रामचरित मे राम के मुख से कहलवाया है कि पिता दशरथ ने प्रजा की सेवा (लोकाराधन) मुझ राम को व अपने प्राणों को छोड़ते हुए भी निश्चय रूप नँ की ।* नैषधीयचरितम्‌ कादम्बरी3ॐ आदि संस्कृत ग्रन्थो मेँ लोक शव्द (सामान्य जन के अर्थ को अभिव्यक्त करता हे व्युत्पत्ति की दृष्टि सो यदि हम विचार करर तो लोक! शब्द 'लोकृदर्शने धातु व घञ्‌ प्रत्यय के द्वारा बनता है। 3 7“घजञ्‌ प्रत्यय (करणः ओर (अधिकरण अर्थ में लगता




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