मनस्तत्तव | Manstattav
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
46 MB
कुल पष्ठ :
368
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ड )
समस्या का यह् सुलफाव नहीं हं कि क्योकि कुद व्यवहारो की भौतिक रासा-
यनिक नियमों द्वारा व्याख्या की जा सकती ह ग्रतः जो इस नियम के अन्तगंत
नहीं हो सकते, उनको उपेक्षा की जाए वास्तव में समस्थः की विद्यमानता
स्वीकार नहीं की गई, उसका एक दम निषेध किया गया ह । ग्रनेक वैज्ञानिको
ने अत्यन्त धेयं से एसे प्रयोगों का श्राविष्कार किया ह जिससे श्रपना यह
विश्वास प्रमाणित किया जा सके कि प्राणी व्यवहार किसी उद्देश्य को दृष्टि
में रखकर निर्धारित नहीं होते । उन्होंने अ्रपना शेष समय शायद लेख लिख
कर यह प्रमाणित करने में लगाया हूं कि मनुष्य दूसरे प्राणियों के समान
ही हू श्रौर इसलिए “उद्देश्य” उनके (लेखक के भी) व्यवहार की
व्याख्या करने के लिए श्रप्रासंगिक हं । वन्ञानिक यह प्रमाणित करने के उदेश्य
से प्रेरित होकर कि उनके व्यवहार निरटैश्य हैं, भ्रध्ययन के मनोरंजक-
विषय बन जाते हैं ।
“्रन्तिम कारण के बहिष्कार का दूसरा कारण यह भी है कि यह व्याख्या
को हानिकार रूप से सरल कर देता है। यह ठीक है कि पूर्वानुगामी भौतिक
घटनाशओं में श्रनुकम खोजने में किया गया महान परिश्रम भ्रन्तिम कारण के
सरल सिद्धान्त से विनष्ट हौ जाएगा । किन्तु केवल यहु बात कि श्रन्तिम कारण
कौ कल्पना घातक है, एक वास्तविक समस्या की उपेक्षा करने के लिए कोई
उचित युक्ति नहीं है । यदि हमारे मस्तिष्क निबंल भी हों तो भी समस्या तो
समाप्त नहीं होती 1” (1111112.11018 2 86606 से उद्धृत)
यहाँ यह कह देना श्रावश्यक है कि श्रन्तिमि कारणता ग्रौर प्राणी-व्यव्हार
की सोहेश्यता को एक ही भ्रथ॑ में नहीं समभकना चाहिए । यहाँ हम व्हाइट हुड
के प्रक्रिया (प्रासे) के सिद्धान्त को प्रसंग में नहीं लाना चाहते, यहाँ हम
केवल इतना ही कहना चाहते हैं कि प्राणी व्यवहार की सोहेदयता इससे प्रमा-
णित नहीं होती किं मेरा लिखने का व्यवहार सोहे है । यह कहा जा सकता
है कि बन्दर के ्रधिकांश व्यवहार भी सोहेश्य हो सकते हैं श्रौर कुत्ते के भी,
किन्तु इसीलिए मच्छर का व्यवहार भी सोहेश्य नहीं हौ सकता । यह ठीक हूं
किश्टैमारा प्रत्येक व्यवहार एक विशेष भ्रभाव की अनुभूति से भ्रनुप्राणित होता
है और यह श्रपनी चरिताधेता एक विशेष स्थिति में पाता हैं, जिसे हम उस
व्यवहार का उद्देश्य कहते हूँ, किन्तु यह सोहेश्य इस प्रथमं नहींहु कि उस्
व्यवहार में उस उद्देश्य का ज्ञान विद्यमान रहता हूं । अत: यदि हम उस व्यव-
हार को, जिसकी चरिताधता एक विशेष स्थिति झथवा घटना में होती है, एक
प्रक्रिया कहें, तब वह प्रक्रिया एक रौर श्रद्वितीय हे शौर वह एक निश्चित
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