भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा दिए गये महत्त्वपूर्ण भाषण | Bharat Ke Rashtrapati Dr. Rajendra Prasad Dwara Diye Gaye Mahattvapurna Bhashan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
427
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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श्राप समझे कि वह एक चीज जो हमारे सामने रही है श्रौर जिसकी वजह
से सभी लोग चिन्तित रहे हे वह भ्रन्न की समस्या है । देश बड़ा भ्रौर श्राबादी
बड़ी है । तभी शभ्रन्न की कमी है श्रौर जब तक हम श्रपने देशा मे इतना श्रन्न
नही पैदा कर लेगे कि हमारे विदेशों से भ्रन्न मगाने की जरूरत नही रह जाय
तब तक हम सच्चे ' माने मे सुखी नही हो सकते है. भ्रौर इसी लिये हजारो बाते
सोची जाती है कि श्रन्न की वृद्धि कैसे हो । किसानो को नये तरीके बतलाना
श्रौर यह समझा देना कि किस तरीके से एक बीघे मे 10 मन के बदलें 15
मन वे पैदा कर सकते हे श्रौर सिफ॑ बतलाना ही नहीं, भ्रपने हाथो से करके
दिखलाना इतना बड़ा काम है जिस मे सब के सब लग सकते है श्रौर उनको
लगना भी चाहिये । झ्ाप ऐसा नहीं समझे कि हमारे मा-बाप इतना पैसा
वचं करकं गावो से शहर मे पढने के लिये भेजते हे, अपना पेट काटकर हमको
शिक्षा दिलाते है, वह शिक्षा हमको हल चलाने कं लिये नही दी जाती, इतना खर्च
बेकार जाने वाला है । ऐसी बात नहीं है। कोई काम छोटा नहीं है। छोटा
काम भी श्रच्छी तरह से किया जाय, खूबी के साथ किया जाय तो वह बड़ा हो
सकता है । यह गलत धारणा है कि हाथ से काम करना एक मजदूर का काम है
शिक्षकों का काम नही है । इसको छोडना चाहिये । जो लोग इजीनियरिंग मे जाते है
या एग्रीकल्चरल कालेज मे जाते है उनको यह सब करना पड़ता है । मगर में यह भी
समझता हू. कि जितना उनको छोड़ना चाहिये उतना छोड़ते नही है। वे
श्रपने हाथ से सब काम करके दिखला देते है। उस तरह से श्राप भी सभी भ्रपनी-
अपनी जगह पर जाकर विद्या से जो लाभ उठा पाते हे उसको लोगो मे बाटे ।
विद्या ही ऐसी चीज है जो बाटने से घटती नहीं बढ़ती है । जितने प्रकार का
प्रौर धन है वह बाटने से घटता है, विद्या बाटने से बढ़ती है, घटती नहीं ।
श्राप में से प्रत्येक का वही काम होना चाहिये जो मेने बताया । गावों मे जाकर
श्रपने उस काम को कर श्रौर लोगो का उत्साह बढावे ग्रौर उनके उत्साह को
बढ़ाने में सफल होने के लिये स्वय उदाहरण बनकर, मिसाल बनकर लोगो को
दिखलाये ।
यह कालेज पिछले 60 वर्षों से बहुत तरह की. कठिनाइयों से गुजरता
हुआ आज इस श्रवस्था तक पहुंचा है । इसके लिये में सब से पहले उन महानु-
भावों को धन्यवाद देता हु जिन्होने पहले-पहल एक ऐसी संस्था की स्थापना
करने की सोची थी जब इस तरफ लोगो काध्यान उतना नही था ग्रौर उसक
बाद म्रधिक लोगो की सहायता पाकर इसको श्रागे बढ़ाया, एक विभाग के बाद
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