क्रान्ति का मूल स्त्रोत बालक | Kranti Ka Mool Shrot Baalak

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अमरनाथ गुप्त - Amarnath Gupt

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बंसीधर -Bansiidhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| में पड़े हुये मानव-समाज को अनुप्राणित करने की केवल एक ही उपाय है श्रौर वद्द है बालक । यदि मानव समाज को उन्नति के शिखर पर द्यारूद करना हैं, दुनियां में शान्ति स्थापित करना ६; तो हमें बालक को समभना होगा, उसका सम्मान करना होगा । जालक विपथगामी, नासममः और निबुद्धि नहीं हैं। बालक कोर कागज, खाली बतेन यामियटीका ढेला भी नहीं हें जिसे हम अैसां चाहें बना सकें । बालक अद्भुत शक्तियों का भणडार हे; सद्णुणों की खान हे । उसकी शक्तियों और गुणों की कोई मयादाया सीमा नहीं है। मिस्टर होग्स ने बिलकुल ठीक लिखा है कि “प्रत्येक नव-जात शिशु मे ईैसामसीह छिपा ह्राद । मनुष्य जन्मसे दी खराब होने बदले जन्म से ही ईश्वर बनने की शक्ति लेकर पैदा हुआ हे ।” विद्वानों; विचारकों; तत्ववेचातओं; शिक्षा-शास्त्रयों और मानस-शास्त्रियों ने मुक्त करांठ से बालक की प्रशंसा की ह श्रौर उसकी महिमा का बखान किया है | प्राचीन काल के एक महान श्राचार्य ने तो यहां तक लिख दिया हैं कि “जो के$ भी इन नन्दी पर अत्याचार करता हे; उचित दो चक्की का पार गलेमे डाल कर उसे समुद्र मे डबो दिया जाय + 'बालक एक स्वतन्त्र व्यक्ति है । अपना विकास आप करने की उसमें शक्ति हैं। जान लॉक लिखता है--“बालक भी दमारी तरह स्वतन्त्र है। जिस तरह बडे वृदे स्वतन्त्र ई, उसी तरद बालक भी स्वतन्् है। वे जो कुं श्रच्छा करते है सो स श्रन्तः स्फूर्ति से ही करते है । वे स्वाधीन च्रौर सम्पूणं ह । श्रापको जो पसन्द हो; वह अगर बालक को पसन्द न हो, उसमें उसकी सचि नहो; तो वह काम उससे कभी न करवादये । सिखाने के विष्रयों की अपेक्षा सीखने वाले का महत्व अधिक है । क्या सीखना और क्यान सीखना, इसका निर्णय सीखने वाले को ही करना चाहिये सिखाने वाले को नहदीं । बच्चों




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