ग्रामीण महिलाएं में पर्यावरण सम्बन्धी चेतना : एक समाजशास्त्रीय अध्ययन | Gramin Mahilayao Me Paryawaran Sambandhi Chetna : Ek Samajshastriya Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
292 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुख्यतः वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर है प्रति व्यक्ति भूमि का अनुपात इस देश में जहाँ तक
कृषित भूमि का सम्बन्ध है | .20 हेक्टेयर है। जो एक कृषि प्रधान देश के लिए बहुत कम है |
वर्तमान समय 1 अरब आबादी के लिए 22.5-24.5 करोड़ टन तक खाद्यान उत्पादन बढ़ाना
होगा|
इस देश मेँ वन 750 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले है | राष्ट्रीय वन-नीति का लक्ष्य
है। कि कम से कम 11 करोड हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगे होने चाहिए । जिससे पर्यावरण की
स्थिरता ओर पारिस्थिकीय सन्तुलन बना रह सकं । हमारे देश में स्थिति पर काबू पाने के लिए
और उपज ज्यादा बढ़ाने के उद्देश्य से रासायनिक उर्वरकों और 1 लाख टन कीटनाशी दवाइयां
खेतों में इस्तेमाल की जाती है । ये कीटनाशी और कीटमार तथा डी.डी.टी. औषधिया, फसल पर
या खेतों में पानी छिड़काव के समय पानी में घुलकर अन्ततः पोखरो, नदियो; और भूमिगत
जलाशयो, में पहुच जाती है । कृषि सचिव डा० गिल के अनुसार 31 दिसम्बर 1992 तक भारत
सरकार ने बारह कीटनाशी ओषधियों का प्रयोग निषिद्ध कर दिया था ओर तेरह कीट मार
दवाइयों कं प्रयोग पर रोक लगा दी जिसमें से डी.डी.टी. का प्रयोग भी शामिल है | इन दवाइयों
सहित सिंचित खेती से प्राप्त खाद्यान्नौं द्वारा हमारे शरीर में बिषैली दवाइयाँ प्रवेश कर जाती है |
और स्तनपान तथा शिशु-खाद्य पदार्थों के जरिए शिशुओं के पेट में पहुँच जाती है और हम सब
को साध्य आसाध्य रोगो से ग्रसित कर देती है। इस प्रकार मिट्टी, पानी, पेड-पौधे, जीव-जन्तु
के प्राकृतिक ताल-मेल अथवा सामंजस्य को हम अपनी नादानी से असंतुलित कर देते है
परिस्थिति की अस्त व्यस्त कर देते हँ । पर्यावरण सन्तुलित रखने कं लिए भारत में कई संगठन
तथा संस्थाए कार्य कर रही हे इनमें प्रमुख इस प्रकारसेहे। =
1. ` बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, बम्बई सी 1 . ु | 4 (1
2.
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