भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन एवं संवैधानिक विकास | Indian Nationalist Movement And Constitutional Devoplement Edition Third

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ | भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन कि भारत की पुनर्जागृति मुख्यतः आध्यात्मिक थी तथा एक राष्ट्रीय ६ आन्दोलन का न्प ्रारण करने से पूर्वं इसने अनेक सामाजिक एवं धामिक आन्दोलनों का सूत्रपात किया 1! इन्हीं सुधार-आन्दोलनों के कारण प्रगतिवादौ विचारों को प्रेरणा मिली तथा भारतीयों में राष्ट्रीय आत्मसम्मान तथा उत्कट देशभक्ति की भावना उत्पन्न हुई । अंग्रेजों वी नौकरणाही की मनोवृत्ति एवं कार्यो ने जनता के हृदयों में राष्ट्रीयता की. लहर पनपायी । ब्रिटिण शासन ने समय-समय पर भारतीयों के हृदयों में उमड़ती चेतना का दमन करना चाहा, परन्तु वह जैसे-जैसे दवायी गयी, वह और भी अधिक भड़की । इसी समय यूरोप में भी राष्ट्रवाद की लहर फल रही थी, जिसके फलस्वरूप जमनी तथा इटली का एकीवरण हो चुका था । टर्की से यूनान को तथा हॉलेण्ड से वेल्जियम नो भी दासता के वन्धन से मुक्ति प्राप्त हो चुकी थी तथा पूर्व में एक छोटे से पड़ौसी- देश जापान के एकाएक उत्कर्ष ने भी भारतीयों को प्रेरणा प्रदान की । इन अनेक नगरणी के फलस्वरूप भारत मे जो राप्ट्रीयता की भावना फैली, उसका मुख्य उद्देश्य भारतीयों की उन्नति ही था। पर वयोंकि भारतवपं उस समय ब्रिटिश शासन के अधीन धा तथा परतन्त्रता उसकी प्रगति के मार्ग में सबसे वड़ी बाधा थी, इसलिए भारतीय राप्ट्रीयता का मुख्य उद्देश्य विदेशी शासन से मुक्ति पाना वन गया । जिन नारण से भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ, उनकी चर्चा आगे के पृष्ठो मे की जायेगी । भारतीयों के हृदयों में राप्ट्रीयता की भावना बढ़ाने में अंग्रेजी शासन ने प्रत्यल्त गय अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से पर्याप्त योगदान दिया । मंग्रेजी शासन के फल- स्वरूप देश में पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार हुआ । भारतीय प्रजो णासन के प्रभाव पाश्चात्य सभ्यता तथा संस्कृति के सम्पर्क में आये तथा उनके सकीर्ण विचार णनैः-शनेः लुप्त “होने लगे । अंग्रेजी शासन का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य देश में राजनीतिक एकता की स्थापना करना था, पनन्त एमन साथ ही, जहां अग्रेजी शासन के कारण यह सब वातें हुई, वहाँ क्योकि शासन सा स्परूप सदा ही प्रतिगामी र हा, कभी भी शासकों ने भारतीयों की भावनाओं पर ध्यान न त्या, जीर गर्वदा ही उन्होंने ऐसी नीतियों का निर्धारण किया जो गमण्ट के हित में अधिक थी, इसलिए भारत में अग्रेजी शासन के विरुद्ध असन्तोप था 'दाहागया। इन असरतोप में और भी उम्र रुप धारण कर लिया, जवकि नितरलालों तथा उद्योगों को हानि पहुँची । शासकों की जातीय भेदभाव [३ दा मान सारण नो सास तथा शानितों के मध्य की खाई णनैः-शनः वदती 11 उव रभ्य म भारतीयों ने सरकार का ध्यान उसकी घ्रुवियों की ओर पाया, सरपर मे इदानीनता दियायी तथा जब उन्होंने अधिकारों की माँग हे 7 दाद क निया गया न न सपा गया । इस प्रकार राप्ट्रीयता की भावना का द लसन्दोप के कारण भी हुआ । रः तरः एरत्ा 51 स्पापन्- र्व दात यै कोई {तिरः एः दात में कोई संगय नहीं किया जा




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