प्यार के भूखे | Pyar Ke Bhookhe

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Pyar Ke Bhookhe by द्विजेन्द्रनाथ मिश्र - DWIJENDRA NATH MISHRA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साबुन ११ उस के पास । सुखदेव को विज्ञायत भेजने को तैयार है } एक मकान दद्ेज में देने को कह रहा है ।' श्यामा फिर मी चुप रही । व्रजलाल ने खाना समा करके पानी पिया श्र उठ गये । घड़ी की ब्ओर देखते गये और कपड़े पहिनते गये । फ़ाइल माली श्र शीशे में अपना मुँह देखा । बाहर को बढ़े कि श्वामा ने रास्ता रोक कर कहा-- ध्येरे लिए; एक स्वेटर ला दो |” स्वेटर [पति ने भिडकी देकर कदा-- स्या कह रदी दा मुझे त्ाफ़िस को देरी हो रही है और तुम स्वेटर की फ़रमाइश कर रही हो ! सुखदेव से कहना |” श्यामा ने सिर झुका कर कहा--'तो सुके कुछ रुपये दो आज | मैं मैँगवा लूंगी किसी से | किसी से क्यों ?”--ब्रजलाल ने जह्दी से एक दस रुपये का नोट नकाल कर कहा--'सुखदेव ले श्रायेगा । लो, थामों । है कहाँ सुखदेव ?” पर सुखदेव का पता न था | घंटे पर घंडा बीतता गया | सुखदेव जाने कहाँ जाकर बैठ गया था} खाना ठंडा होने लगा । श्यामा बार-बार दरवाज़ें तक आ कर दूर तक नज़र दौड़ाने लगी | दोनों लड़के एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर, चायवाले की दूकान पर जाकर चाचाजी को खोज आये और उदास होकर थूखे-प्यासे लेट रहे चाचाजी के पलंग पर | दुर गल्ली के छीर पर एक सद्खी लङका रहता था } श्यामा ने घवरा कर बड़े सुन्ना से कहा--“जा तो, विद्यायूघण के यहाँ चला जा मैया ! कहियों कि हमारे चावाजी अभी तक घर नहीं लोटे । तुम को मिले थे १ कहाँ गये हैं वाचाजी ? कहिंयो कि हमारी माँ बहुत घबरा रही हैं ।* तमी खट्:से किसी के जूतों की श्रावाज़ हुई । श्यामा ने चौंक कर देखा तो सुखदेव सिर झुक्ताये फ़ीते खोल रहा था |]




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