नव्य हिन्दी - समीक्षा | Navya Hindi - Sameeksha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
405
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कृष्ण वल्लभ जोशी - Krishn Vallabh Joshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शुष्ल जो का आविर्मोव ४३
दिवदी जी की पूववर्ती हिंदी आलोचना रीतिकाल की पतविल प्रवृत्तियो,
नायक -नायिका भेद, नख निल वणन, अनकार-योजना, अनुप्रास भौर टेप
आदि तक थी । उपाध्याय पडिन बद्रीनारायण चौधरी ने अपनी “आनद
कार्दास्वनी” मे पहली बार हिदी-ससार का आवाहन विया । इसी पत्रिका
मे लाला श्री निवास दास के 'सयोगिता स्वपवर' वी विस्तत आलोचना वी
गई थी जिसमे दोपो का विवेचन मात्र या) 'कवि-बचन-सुधा', द्रिदचद्र
मग्जीने' (१७०३) १८७४ मे हरिदचद्व चाद्िवा' आदि पत्रों मे भी समय
समय पर विभिन्न लेखका ने रचनाकारों वी इतियां पर अपना दृष्टिकोण
रखा, कितु इनमे या तो मात्र दप्टिकोग था और यदि लेखक कवि अथवा
नाटककार है तो वह रस, अलकार, छद नापक्-नायिका भेद गिनाने कगता
था। यो भी भारते दुकाल मे हम कोई भी विशुद्ध मदर थ नहीं
मिलता है । £
द्विवेदी जी ने तो अपने आलोचनात्मक रेखो में हिंदी के लेखा मे
लिए दिशा सकेत मात्र क्या था । उहोने जो सबते बड़ी वाम विया था
वह था भावी आछोचको के लिए एक बैशानित दाक्ति सम्पप् भाषा देकर
मार्ग प्रशस्त वरना । उनकी आालाचना मे हम नूतन वा विदलेषण नही
मिलता । युगानुरुप उसकों सेकेत भर मिलता है । यही कारग है कि. द्विवेदी
बाल ने साहित्य में भाव प्रवणता, संवेदनशीलता ओर अनुभूति का वह तारत्य
नहीं मिक्नता जो कि हम परवर्ती काल के साहित्यवारों मे मिलता है ।!
उतने हिंदी आलोचना शो चार देने दी ! भभ
(१) “क्वि कत्य नई कविता का भविष्य' आदि सैद्धातिक
निदध लिखकर उ होन हिंदी आलोचना की नीव रखी ।
श- यद्यपि द्विवेदी जी ने हिंदी के बडे २ वदिया का लेकर गम्भीर साहित्य
समीक्षा का स्थायी साहित्य नहीं प्रस्तुत किया, पर नई निकली पृस्तका
वी भाषा आदि की श्री आलोचना करके हिंदी साहित्य का बडा भारी
उपकार किया । यदि द्विवेदी जी न उठ खड़े होते तो जैसी अव्यवस्थित
व्याकरण विरुद्ध और उटपुटाग भाषा चारो ओर दिखाई पड़ती थी,
उसवी परम्परा जहूंदी न रुकती, उनके प्रमाव से लेखक सावधान हो गए
और जिनमे भाषा की समझ और योग्यता थी उन्होंने अपना सुधार
क्ा। हि० सा० का इ० पूरे शूट ४ ।
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