हिन्दी और तेलुगु में महाकाव्य का स्वरूप - विकास | Hindi Aur Telugu Men Mahakavya Ka Swaroop - Vikas

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Book Image : हिन्दी और तेलुगु में महाकाव्य का स्वरूप - विकास  - Hindi Aur Telugu Men Mahakavya Ka Swaroop - Vikas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(2) 9 चौ दहेवी शताब्दी के आचायं विहवनाथ एव चिद्यानाथ के काव्यकास्त्रीय प्रन्थ पट्च एव पाठने की दृष्टि से अधिक प्रचलित रहे है । विश्वनाथ के अनुसार महाकाल्य सगंबद्ध होता है । महाकाव्य की कथा इतिहाससम्मत अवा सनज्जनाधित होती है, उसका नायक सद्रशज, क्षेत्रिय था देवता होता हैं । एक वंशं के अनेक राजा या अनेक कलीन राजा भी सायक वन संकेते ह । श्युगारः, नीर एवं ज्ञान्त इनमे से कोई एक रस अभी होता है, आदि में तसस्क्रिया, चस्तुनिर्देद, आशीर्वाद-इन तीनों में से किसी एक रूप में मगलाचरण होता है। खलों की निन्दा एवं सज्जतों का गुणकीतंन होता है । पूरे सगें में एक ही' प्रकारके छन्द का प्रयोग होता है, परन्तु ममे के अन्त से भिन्न बृत्त का प्रयोग होता है। सर्ग न वो अति स्वल्प होने चाहिए लौर से अति दीर्घ । सख्या में सगे आठ से अधिक होते हैं । वर्णनों की सूची में संध्या, सूर्य, इन्दू, रजनी, दिवस, प्रातः, मध्याह्न, मूमया, ऋतु, पव॑त, सयोग, वियोग, मुनि, यज्ञ, युद्ध, प्रयाण आदि है । वर्णन ययायोग्य और सामोपाग होता चाहिए 1” इस प्रकार विषट्वनाधथ की पररिभाषामे सस्कृत के गण्यमान महाकाव्यौ के लक्षण समाविष्ट होते है और दण्डी आदि पूर्वाचार्यों के लक्षणों का पुनराख्यान भी इसमें प्राप्त होती है 1 1 सर्वंबन्धो महाकाव्य तैको नायकः सुरः सदशः श्चत्निमीवापि धीरोदात्त गुणान्वितः 1 एकवंभवाभृपाः कुरुजा बहुवोपिवा ॥ श्यगारवीरश्ान्तानामेकामी रस इष्यते । अंगानि सर्वेपिरछाः सवे नाटकस्य. ॥ इतिहगसोद्‌भव वृत्त मन्यद्रा सञ्जनाश्चयम्‌ । चत्वा रस्तस्य वर्भाः स्युस्तेष्वेकच फल भवेत्‌ ॥ जादौ रमस्कियाशौर्वां वस्तुनि्देश एववा । क्वचित्लिन्दा खलादीना घताचगृणकीतंनम्‌ ।+ एकवृत्तमयैः पद्य रवसानेन्यवुच्तकैः १ 18179777 11117211117117177111511111.1111.; संध्या सूयस्वुरजनीः प्रदोषध्वान्त वायः चचक + 1181711111777171721.11117711577..; वणतीया यथायोगं सागोरपागामी इह ॥ --श्ारित्यद्पंण 6-315-324




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