अभय दान | Abhay Daan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१ १५ }) र डा० झव्यास ने जैन सुनि घी सुशील कुमार जी के सदूपरामर्श से श्रपनी भुख हड़ताल समाप्त कर दी 1 झागे भी राजधानी में स्यायी एकसा के लिये ध्ौर सांप्रदा- पिकः सेल मिलाप के लिये जैन युनि थी सुशील कुमार जी दिभिरन संप्रदाधों के नेतायों से चरावय व्यक्तिगत भेंट कर रहे है । भर राजवानी में ध्रपन सांप्रदायिक जहर न फंले इसके लिये ठोस एवं रचनार्माक कदम उठाने के लिये विभिन्न योजनाशों को कार्यक्रम में परिसित करने में लगे हुए है। भगवान महाचीर-- चन्न णुव्ला व्रयोदती कै दिन कुल्डन पुर नगर दीपों की ज्योति से जगमगा उठा था । दाइनाई श्रौर सुरही की ध्वनि से घाकण प्रीर पाताल गुज रहै थे। वयोंकि इस दिन कुन्डनपुर नरेण सिद्धार्थ के प्रांगण मे दिव्य प्रसून विला या! माता व्रिगला क्ती सूनी गोद दसी दिन हरी हुई थी 1 ऐसे पुत्र को पाकर राजाकी प्रसन्ता का फोर ठिकाना मे रहा । पुष प्राप्ति थी सुधी में राजा में राजकोप कामुह सोल दिया । ज्योतिपियों के परामर्श डे दालक का नाम बर््धमान रग्यों 1 श्राठ वर्ष की झ्यायु में ही यह बालक श्रपने साथियों का गीवप्रिय मेहा वन गया । एक दिन वह वच्चों के साथ सेल रहा या! चेत था एक बह पर वारी-वारी से चढ़ने का । जब वर््धमान चूत पर चढ़ा तो एक घविकरान सर्प ने वृक्ष के तने को चारों श्रोर से घेर लिया 1 मिश्र भाग निकसे । परन्तु महावीर डरे नहीं । उस पुःफारते साप को धरने हाथों से पमल नाल की तरह पकड़ फर दर फक दिवा !




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