गुरुदेव श्री मांगीलालजी महाराज का दिव्य जीवन | Gurudev Shri Mangilalji Maharaj Ka Divya Jeevan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रायन्
किसी भी राष्ट्र की मद्दानिधियों में संतों के व्यक्तित्व और
छतित्व का विशिष्ट महत्त्व रहता आया है । वस्तुत' राष्ट्रका वास्त-
विक उत्थान सरतो की स्तेहसिक्त वाणी का ही परिणाम है। जनता
के हृदय पर स्वभावतः सन्तो की सयम शील वृत्ति सदैव घर
किये रहती है । जिसके परिणामस्वरूप जनता को मानवता-मलक
9
सद् भावना के सुद् सूत्र में बॉधे रहते हैं । सतो'का निश्डल व्यवद्दार,
निरपेक्ष वाणी और उनकी सम्यकमूलक साधना जीवन की
नैतिक अनमोल धरोहर है ।
जैन-सस्कृति उ्यक्ित मूलक न होक गुणमूलक पर परा के धरति
आस्थावान है । इसलिए बहुत प्राचीनकाल से दी जैन धमीवलम्बियों
मे गुरुपद् का स्थान सदा से ऊ चा जौर आदरणीय रहता आयाहै।
समान राष्ट्र और धर्म का नैतिकता मूलक भार मुनियों के सुद्
स्कन्घों पर रहता आया है । राजस्थान की लोकचेतना और क्रांति-
कारी धमे भावनाओं को प्रौर्साइन देने में शताब्दियों से जैनमुनियों
ने जो योग दिया है वह आज भी अलुकरणीय है । राजस्थान कीं
हो नहीं अपितु समस्त भारत की लोकस'स्कृति पर इन प्रचुद्ध
पेतनाओं का भमाज मी भछुण्ण प्रभाव दे। उनकी वाणी और
सयमशील बृत्ति से जनता आज भी आस्यावान है ।
गुरुदेव श्री सागीलालजी सद्दाराल राजस्थान के ऐसे ही
सष्टान सन्तो मंसे एक थे जिनके व्यक्तित्व का गद्दरा प्रभाव न
केवल सेवाड तक ही सीमित है अपितु सम्पूर्ण राजस्थान, मध्य-
मेश जैसे सुव्रिस्ृत प्रदेशो मे भी इनके प्रति श्रद्धानिष्ट व्यक्तियों
User Reviews
No Reviews | Add Yours...