गुरुदेव श्री मांगीलालजी महाराज का दिव्य जीवन | Gurudev Shri Mangilalji Maharaj Ka Divya Jeevan

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Gurudev Shri Mangilalji Maharaj Ka Divya Jeevan by मुनि हस्तिमल - Muni Hastimal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रायन्‌ किसी भी राष्ट्र की मद्दानिधियों में संतों के व्यक्तित्व और छतित्व का विशिष्ट महत्त्व रहता आया है । वस्तुत' राष्ट्रका वास्त- विक उत्थान सरतो की स्तेहसिक्त वाणी का ही परिणाम है। जनता के हृदय पर स्वभावतः सन्तो की सयम शील वृत्ति सदैव घर किये रहती है । जिसके परिणामस्वरूप जनता को मानवता-मलक 9 सद्‌ भावना के सुद्‌ सूत्र में बॉधे रहते हैं । सतो'का निश्डल व्यवद्दार, निरपेक्ष वाणी और उनकी सम्यकमूलक साधना जीवन की नैतिक अनमोल धरोहर है । जैन-सस्कृति उ्यक्ित मूलक न होक गुणमूलक पर परा के धरति आस्थावान है । इसलिए बहुत प्राचीनकाल से दी जैन धमीवलम्बियों मे गुरुपद्‌ का स्थान सदा से ऊ चा जौर आदरणीय रहता आयाहै। समान राष्ट्र और धर्म का नैतिकता मूलक भार मुनियों के सुद्‌ स्कन्घों पर रहता आया है । राजस्थान की लोकचेतना और क्रांति- कारी धमे भावनाओं को प्रौर्साइन देने में शताब्दियों से जैनमुनियों ने जो योग दिया है वह आज भी अलुकरणीय है । राजस्थान कीं हो नहीं अपितु समस्त भारत की लोकस'स्कृति पर इन प्रचुद्ध पेतनाओं का भमाज मी भछुण्ण प्रभाव दे। उनकी वाणी और सयमशील बृत्ति से जनता आज भी आस्यावान है । गुरुदेव श्री सागीलालजी सद्दाराल राजस्थान के ऐसे ही सष्टान सन्तो मंसे एक थे जिनके व्यक्तित्व का गद्दरा प्रभाव न केवल सेवाड तक ही सीमित है अपितु सम्पूर्ण राजस्थान, मध्य- मेश जैसे सुव्रिस्ृत प्रदेशो मे भी इनके प्रति श्रद्धानिष्ट व्यक्तियों




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