जीवन - कण | Jivan - Kan
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कृपाशंकर त्रिपाठी - Kripashankar Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का
प्रबंध में बाघा ढाल कर श्रपने लिए टिकिट खरीदने की
कुदत्ति पर पके इठ समय ग्लानि हुई । श्रौर शत्रुध्नजी,
नए रेगरूट ! क्यो न चद भी मेरी तरह श्रोवरच्रिज के नीचे
श्राषा षया टदल कर स्टेशन-मार्टर के कमरे तक एक
चक्कर लगा श्राए ? जी में हुश्ना किं श्रपनी कायरता के
प्रतीक उप्र टिकिट को टुकड़-इकड़े कर परों-तले खूब कुचल ,
खूब कुचल | पर देर हो रही थी ।
शर्माजी ने सब बयान सुना श्रौर सुक्े टीन के मुखाफिर-
खाने में छोड़ कर स्टेशन जाने को उयत हुए। मगर मैंने
साफ़ छट दिया, “भई, श्रव तुम श्राघा घंटा लगाओगे ।
मुम ष तरह का इन्तजार पसन्द नदी ! मेरे पाह टिकट हे,
में मी चलता हूँ ।””
“टिकट दे १ श्ररे, तब तो काम बन गया | ला,
टिकट सु दे ।””
श्रीर् म ११
“श्रपने लिए प्लेटक्रा्म-टिकट खरीद ले 1
मेने टिकिर शर्माजी के खौप कर, उनके सामने दी,
टिकट खरीदने श्रौर टिकिट रोक रखने की श्रपनी दो-दो
जुद्धिमानियों को जी खोल कर बधाई दी । दिल में घुपचाप
सोन लिया कि श्रादेश में काम कर बैठना-मले दी बह
टिकर को फाड़ डालने का दी काम हो-श्रच्छा नहीं होना ।
श्रौर उसी खमय दो घुद्धिमानियाँ, खुद-व-खुद, श्रौर कर
ढालीं । श्रर्षात्, एक के बजाय दो प्लेटफार्म-टिकिटः
खरीद लिए)
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