जीवन - स्मृतियाँ | Jeevan - Smritiyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर १
दीवट पर रेड़ी के तेल का एक दीया टिमटिमा रहा है । दीवार पर
रखेश माका तस्वीर और काली मेया का पट लगा हुआ है । पास:
ही छिपकली कीड़ों का शिकार करने में मशगूल है । घर मे और
कोई सामान नहीं है । फशै पर एक मेली चटाई बिछी हुई है ।
यहाँ बता रखूँं कि हमारी चाल-ढाल रारीबों-जैसी थी ।
गाड़ी-घोड़े की कोडे बला नाम-सात्र को ही थी । बाहर कोने की
रोर इमली के पेड़ फे नीचे फस के घरमे एक बग्घी और एक
बूढ़ा घोड़ा वेधा रहता था ] पहनने के कपड़े निहायत सादे होते
थे) वैरमें मोजा लगाने की नौक्त बहुत देर के वाद आई
थी । जव त्रजेश्वर के चिट्टे को लॉघकर जल-पान से पाव रोटी
श्र केले के पत्ते में लपेटा हुआ मक्खन नसीब हुआ, तो ऐसा
लगा, मानो आसमान हाथ की पहुँच के भीतर झा गया हो ।
पुराने जमाने की बडी आदमीयत को सहज ही मान लेने की ताल्लीस
'चल रही थी ।
हमारी इस चटादं-विद्धी महफिक्ञ का जो सरदार था, उसका
नाम था त्रजेश्वर ! सिर और मूं छों के बाल गंगा-जमुनी, सु ह
के ऊपर भूलती हुड सूग्वी भुरियाँ, गम्भीर मिजाज, कड़ा गला,
'चबा-चबाकर बोली हुई बाते । उसके पुराने मालिक लदमीकान्त
नासी-गरामी रस थे । वहाँ से उसे उतरना पड़ा था--हमारे-जेसे
उपेक्षा मे पते लड़कों की निगरानी के काम में । सुना था, गाँव
की पाठशाला मे वह गुरुगीरी का काम कर चुकाथा। वह शृस-
आनी चाल ओर बोली उसके पास अन्त तक् बनी रदी । भवाव
लोग वैठे है -एेसा न कहकर वह् कदता--“्रतीक्ञा कर रहे
है, सुनकर मालिक लोग 'आापस में हँँसा करते । जेसा ही
उसका गुमान था, वैसा ही पवित्रता की वाई भी थी। स्नान के
समय जन् तालाव में उतरता, तो ऊपर के पानी को, जिसमें तेल
उतरतता रहता था, पांच-सात वार ठेलता और फिर धप्र-से
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