स्वामी राम तीर्थ - संकलन (भाग-सत्ताइसवां) | Swami Ramteertha - Sankalan (PART 27)

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SWAMI RAM TEERTH PART 27 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाप की समस्या. १९. ्ास्तविकता मे इद जानना । ईब मे ह-्से सिद्ध करो, “कया वट मेरी श्रसली प्रकृति हैं १ क्या मैं चह्द हूँ १ ” यदि मैं हूँ, तो दुनिया केचल शक तरंग हे, मैं क्‍यों उसके पीछे ललचाउं ? क्यों ? क्योंकि देदीप्यमान सूर्यं म को विजली की रोशनी चमकती नदीं है । घट केवल श्रधरे दी मे चमकती ौर प्रकाश देती है । धीरे श्रे उज्ज्वल सुय-पकाश मे श्राश्यो, इन्द्रियो का खख दीपक की तरह कोई प्रभा नहीं फैलाता । गाली देना और निन्दा करना श्स्वाभाविक है 1 तुम इसे तभी कुचल सकते हो जब इस से ऊपर उठो 1 भाई ! उपाय का उपयोग करो श्औौर उठो 1 डुनिया ख़ुद पक झंचमा दे । दूसरे झाचस्भों की कोई ज़रूरत नहीं दे । सब पापों के कारण से डरो जो केवल श्रात्मा को जानने सि दुर होत्ता हे) चिश॒द्धता का शलुमव करो रौर विशुद्ध दो जाझो दूसरे किसी धर्म की शिक्षा देना श्रस्वामाविक दै । 430 ९० 0 १० फरण एणण€, छप छाए उच्च 126. * जितः पठथ) 0 88 क फ्रहा'8ए67' हु0ए 98; बच छह फु0ए 876; दा। 06 कक हा1078, ४ सकता 1९ 18 ४066 018801४९ 2111 7९, वाते 06 € 01158 प् 828. 076, 20५ 1100 इध्धाप्म- ही 8६6 ए शा एद्तप्रा76 बत 6 1 शक. ५ श्रान्नो वान शरान्न; तुम मुख में दो 1 * दूर रो, या निकर रहो, जदां कुर्दी तुम दो,




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