स्वामी राम तीर्थ - संकलन (भाग-सत्ताइसवां) | Swami Ramteertha - Sankalan (PART 27)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पाप की समस्या. १९.
्ास्तविकता मे इद जानना ।
ईब मे ह-्से सिद्ध करो, “कया वट मेरी श्रसली
प्रकृति हैं १ क्या मैं चह्द हूँ १ ” यदि मैं हूँ, तो दुनिया केचल
शक तरंग हे, मैं क्यों उसके पीछे ललचाउं ? क्यों ? क्योंकि
देदीप्यमान सूर्यं म को विजली की रोशनी चमकती नदीं है ।
घट केवल श्रधरे दी मे चमकती ौर प्रकाश देती है । धीरे
श्रे उज्ज्वल सुय-पकाश मे श्राश्यो, इन्द्रियो का खख दीपक
की तरह कोई प्रभा नहीं फैलाता । गाली देना और निन्दा करना
श्स्वाभाविक है 1 तुम इसे तभी कुचल सकते हो जब इस
से ऊपर उठो 1 भाई ! उपाय का उपयोग करो श्औौर उठो 1
डुनिया ख़ुद पक झंचमा दे । दूसरे झाचस्भों की कोई
ज़रूरत नहीं दे । सब पापों के कारण से डरो जो केवल
श्रात्मा को जानने सि दुर होत्ता हे) चिश॒द्धता का शलुमव
करो रौर विशुद्ध दो जाझो दूसरे किसी धर्म की शिक्षा
देना श्रस्वामाविक दै ।
430 ९० 0 १० फरण एणण€,
छप छाए उच्च 126.
* जितः पठथ) 0 88 क फ्रहा'8ए67' हु0ए 98;
बच छह फु0ए 876; दा। 06 कक हा1078, ४
सकता 1९ 18 ४066
018801४९ 2111 7९, वाते 06 € 01158 प् 828.
076, 20५ 1100 इध्धाप्म- ही
8६6 ए शा एद्तप्रा76 बत 6 1 शक.
५ श्रान्नो वान शरान्न;
तुम मुख में दो 1
* दूर रो, या निकर रहो, जदां कुर्दी तुम दो,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...