नव जागरण कालीन साहित्य में दलित चेतना | Nav Jagaran Kalin Sahity Men Dalit Chetna
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
211
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राजीव प्रताप सिंह - Rajiv Pratap Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मन्दिरों, मसिजदों एंव राजमहलों में चक्कर काटने वाली हिन्दी की
कविता सीधे दलित मानव की उपेक्षा को अपना विषय बनाने लगी ।
नरेन्द्र देव वर्मा के मतालुसार “इस युग में पहली बार कविता
कामिनी ने राजप्रासार्दो का त्याग कर हरी-भरी ठोस जनपूर्ण-धरती
पर पैर रखना सीखा, उसके अलंकरण सादगी के समक्ष पराजित हो
गये, उसकी मधुर वाणी अनगकढ ग्राम्य भाषा की नैसर्गिक सुक्छुमारता
के समक्ष लज्जित हो गयी ।* भारतीय विचारकों ने इस युग में पहली
बार अंग्रेज नीति का पर्दाफ़ास किया। अनेक समाज सुधारक भरतीय
जनता का पथ पदर्शन करने के लिये आगे बढठे। सामाजिक एवं
धार्मिक सुधार आन्दोलन आधुनिक युग की देन है।
भारतेन्दु युग को आधुनिक हिन्दी साहित्य का प्रारम्भिक
काल माना जाता ढै। आलोचर्को ने 1850 ई0 से लेकर 1875 ई0
तक अपनी-अपनी ओर से अलग-अलग काल में इस युग का
प्रारम्भ निर्धारित किया डै। लेकिन भारतेन्दु युग का प्रारम्भ तो सन
1857 के विद्रोह के उपरान्त मानना दही उचित ढोगा। वैसे तो
भारतेन्दु युग रीतिकाल ओर आधुनिक काल का संकान्ति-युग होने के
कारण इस युग मँ प्राचीन ओर नवीन का संगम दिखयी देता है, फल
स्वरूप निश्चित काल का निर्धारण करना सम्भव नर्डी है। वास्तव में
भारतेन्दु युग नव जागरण का युग है एवं इस काल के साठित्य को
नवजागरण काल का साहित्य कडा जाता है।
पाश्चात्य सभ्यतासे सम्पर्क, नवजागरण का आरम्भ,
ब्रह्मसमाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज का प्रभाव, कांग्रेस की
User Reviews
No Reviews | Add Yours...