विश्व के प्रकाश स्तम्भ | Vishv Ke Prakash Stambh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डे
लिए पर्याप्त साधना करनी पड़ती है । जब कोई साधक साधना द्वारा
संस्कार श्रौर भ्रविद्या का नाश कर देता है, तो उसे अलौकिक
श्रानन्द को प्राप्ति होती है । इसे ही निर्वाण कहते हैं ।
गृहस्थ के लिए उपदेश करते हुए बुद्ध ने कहा था--“प्रत्येक
गृहस्य को भ्रपनी गृहस्थी मंगलमय तथा श्राउम्बर-रहितं वनानी
चाहिए } उसका कत्तव्य दहै कि माता-पिता की सेवा करे, उनकी
संपत्ति की रक्षा करे, सब प्रकार से उनका उत्तराधिकारी वनने कौ
योग्यता प्राप्त करे । यदि माता-पिता देह त्याग चुके हों तो श्रद्धा-
पूर्वक उनका स्मरण करे । दिक्षा देने वाले गुरुजनों का श्रादर करे
गौर उतकी सेवा-सुश्रूषा करे तथा उनकी श्राज्ञा में रहे। उनकी
प्रावद्यकताश्रों को भौ यथासंभव पर्णं करता रहै । सहर्धमिणी श्रौर
सहयोगिनी पत्नी का आदर करे । उससे कभी विद्वासघात न करे ।
उसे वस्त्रादि से सदा सन्वुष्ट रखे । संतान को दुष्कर्मों से वचाए |
उनकी शिक्षा-दीक्षा का भली-भाँति प्रवन्ध करे । श्रपने मित्रों श्रोर
स्वजनों से निष्कपट संदुव्यवहार करे। परोपकारी साधु-जनों की
सब प्रकार से सेवा करे । सेवकों की सदा देख-रेख करे, उनका
पालन-पोषण भली-भाँति करे । यदि यज्ञ में ह्सा भ्रनिवायं है तो
ऐसे यज्ञ को छोड़ दे ।
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