विश्व के प्रकाश स्तम्भ | Vishv Ke Prakash Stambh

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Vishv Ke Prakash Stambh by हंसराज गर्ग - Hansaraj Garg

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे लिए पर्याप्त साधना करनी पड़ती है । जब कोई साधक साधना द्वारा संस्कार श्रौर भ्रविद्या का नाश कर देता है, तो उसे अलौकिक श्रानन्द को प्राप्ति होती है । इसे ही निर्वाण कहते हैं । गृहस्थ के लिए उपदेश करते हुए बुद्ध ने कहा था--“प्रत्येक गृहस्य को भ्रपनी गृहस्थी मंगलमय तथा श्राउम्बर-रहितं वनानी चाहिए } उसका कत्तव्य दहै कि माता-पिता की सेवा करे, उनकी संपत्ति की रक्षा करे, सब प्रकार से उनका उत्तराधिकारी वनने कौ योग्यता प्राप्त करे । यदि माता-पिता देह त्याग चुके हों तो श्रद्धा- पूर्वक उनका स्मरण करे । दिक्षा देने वाले गुरुजनों का श्रादर करे गौर उतकी सेवा-सुश्रूषा करे तथा उनकी श्राज्ञा में रहे। उनकी प्रावद्यकताश्रों को भौ यथासंभव पर्णं करता रहै । सहर्धमिणी श्रौर सहयोगिनी पत्नी का आदर करे । उससे कभी विद्वासघात न करे । उसे वस्त्रादि से सदा सन्वुष्ट रखे । संतान को दुष्कर्मों से वचाए | उनकी शिक्षा-दीक्षा का भली-भाँति प्रवन्ध करे । श्रपने मित्रों श्रोर स्वजनों से निष्कपट संदुव्यवहार करे। परोपकारी साधु-जनों की सब प्रकार से सेवा करे । सेवकों की सदा देख-रेख करे, उनका पालन-पोषण भली-भाँति करे । यदि यज्ञ में ह्सा भ्रनिवायं है तो ऐसे यज्ञ को छोड़ दे ।




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