पलकों में उसकी यादों के पल ,ऐसी थी हमारी डिंपल | Palkon Main Usaki Yaadon Ke Pal Yesi Thi Humari Dimpal

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Palkon Main Usaki Yaadon Ke Pal Yesi Thi Humari Dimpal by अलका अग्रवाल - Alka Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मैं चाहती हू कि उस विभूति के आकर्षक व्यक्तित्व और विभिन्‍न उपलब्धियों के बारे मे अन्य लोग भी जाने उसे महसूस करे ओर उसे अपने जीवन मे उतारने की कोशिश करे। आज मे डिम्पल के व्यक्तित्व को यहा आप सबके सामने ला रही हूँ। डिम्पल शुरू से ही खूबसूरत रग रूप की धनी और आकर्षक व्यक्तित्व वाली थी। हम उसे प्यार से डिम्पो कहते थे। हम एक मध्यमवर्गीय सयुक्त परिवार से रिश्ता रखते थे एेसा परिवार जिसने जीवन की धूप-छाव को सहते हुए हमेशा अपने सस्कारो को बनाये रखा। सागरमल अग्रवाल (चाचान) मेरे दादाजी जो एक स्वतत्रता सेनानी व सामाजिक कार्यकर्ता थे उनके परिवार मे 6 बेटे 3 बेटिया हें। मेरे पापा श्री दयाकिशन अग्रवाल भाइयो मे दूसरे नम्बर पर थे। डिम्पल अपने दादाजी की लाडली थी बचपन से ही जरूरत से ज्यादा शरारती थी लेकिन झूठ ना बोलना उसकी मुख्य खूबी थी वह जो भी गलती करता उसे दण्ड देती थी | बचपन से ही गलती पर सजा देने की प्रवृत्ति उसमे विद्यमान थी इसलिये दादाजी कहते थे कि मेरी यह बेटी जरूर न्यायाधीश बनेगी | हमं चार वहने एक भाई हं बहनो मे यह सवे छोटी थी } सबसे छोटी होने के कारण सभी इससे ज्यादा प्यार करते थे। हम सब बाल--वाडी गगाशहर स्कूल मे पलर्की मे दें उसकी यादों के पल ऐसी थी हमारी डिम्पल/1 5




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