नय - कर्णिका | Nay - Karnika
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
विनय विजय जी - Vinay Viajy Ji
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सुरेश मुनि - Suresh Muni
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५ )
मनुष्यों के लिए उन गणनातीत विचार-सरणियो को हृद्यंगम .
करना नितान्त असम्भव है, रतः जैनाचार्योने गहरे
चिन्तन-मनन के वाद् उस विराट विचार-समूह् का सात
वर्गों में समावेश करके गागर में सागर भरने की उक्ति को
चरिताथें किया है । इन सात विचार-वर्गों का नाम ही सांत
नय दहै, जिनके नाम हैं--नैगम, संग्रह, -व्यवद्दार; ऋजुसून:
शब्दः समभिरूढ् श्रौर एवभूत । विचार-मीमांसा का यद
एक फेसा विशिष्ट एवं सवौद्ग-पूं वर्गीकरण है कि संसार
का कोई भी तैयक्तिक, सामाजिक, धार्मिकः दाशेनिक व्याव-
हारिक तथा पारमार्थिक विचार इन सात नयो की सीमा
से बाहर नहीं रद्द पाता ।
जेन-जगती के उ्योतिधेर विद्यान् उपाध्याय श्रीविनय-
विजय जी ने अपनी इस (नयकर्णिका नामक लघु कृति मे
जेनःसंस्छृति के श्वन्तिम तीर्थंकर श्रमण भगवान् महावीर
की स्तुति के रूप मे उपयु क्त सात नयों के स्वरूप को अत्यन्त
सरल, संक्षिप्त श्नौर कलात्मक पद्धति से समाने का
मदां प्रयास किया है । संेप मे नयो का परिज्ञान करने
के लिए उपाध्यायश्री जी की यह अनुपम कृति नितान्त
उपयोगी है--यह्द अधिकार की भाषा में कहा जा सकता
है । खत्यन्त संक्षिप्त श्रौर भगवान् की स्तुति-ल्प होने से
यह कृति कंठाम होने में अ्रत्यन्त सुगम है- यह् तथ्य
भी सूयं के प्रकाश की तरु स्पष्ट ह!
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