आँधी | Aandhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रधी | ११
यने समम लिया; कि युवक का नाम गुल है । मैने कहा-हौ, वद
हारी चारयारी खरीदने श्रावेगा। गुल ने लैला की ओर प्रसन्न
दृष्टि से देखा ।
परन्तु मैं, जैसे भयभीत हो गया । श्रपने ऊपर खन्देह होने लगा |
लेला सुन्दरी थी, पर उस के भीतर भयानक राक्षस की श्राकृति थी या
देवमूत्ति ! यह बिना जाने मैंने क्या कह दिया ! इस का परिणाम भीषण
भी हो सकता है । मैं सोचने लगा । रामेश्वर को मिचर तो मानता नही, `
किन्तु सुक्ते उस से शत्रुता करने का क्या अधिकार है |
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चन्दा के दक्षिणी तट पर ठीक मेंरे बँगले के सामने एक पाठशाला:
थी । उस में एक सिंहाली सज्जन रहते थे । न जाने कहाँ-कहाँ से उनको.
चन्दा मिलता था । वे पास-पड़ोस के लड़कों को बुलाकर पढ़ाने के लिए,
बिठाते थे । दो मास्टरों को वेतन देते थे । उनका विश्वास था कि चंदा
का तट किसी दिन तथागत के पवित्र चरणु-चिन्हों से अंकित डा था
वे द्राज भी उन्हें खोजते थे । बड़े शान्त प्रकृति के जीव थे । उन का
श्यामल शरीर, कुंचित केश,तीद्ण दृष्टि, सिंहली विशेषता से पूणं विनय;
मधुर वाणी श्र कुछ-कुछ मोटे श्रघरों में चौबीसों घंटे बसनेवाली हैँसी
आकषेण से भरी थी । मैं भी कमी-कभी जब जीभ में खुजलाहट होती,
वहाँ पहुंच जाता । श्राज की वह घटना मेरे गम्भीर विचार का विषय
बन कर सुख व्यस्त कर रही थी । मैं अपनी डॉगी पर बैठ गया । दिन
श्रमी घन्टे-ठेढ़-घन्टे बाकी था । उस पार खेकर डोगी जे जाते वहत देर
नहीं हुई । मैं पाठशाला और ताल के बीच के उद्यान को देख रहा था |
खजूर शरोर नारियल के ऊँ चे-ऊँ चे वृक्षों की जिस में निराली छुटा थी |
एक नया पीपल श्रपने चिकने पत्तों की इरियाली में भूम रहा था। उसके .
नीचे शिला पर प्रज्ञाखारथि वैठेये। नाव को टका कर मैं उनके समीप
पहुचा । शस्त होनेवाले सूयबिम्ब कौ रगीली किरणें उनके प्रशांत मुख-
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