आँधी | Aandhi

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Aandhi by जयशंकरप्रसाद - Jaysankar Prsaad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रधी | ११ यने समम लिया; कि युवक का नाम गुल है । मैने कहा-हौ, वद हारी चारयारी खरीदने श्रावेगा। गुल ने लैला की ओर प्रसन्न दृष्टि से देखा । परन्तु मैं, जैसे भयभीत हो गया । श्रपने ऊपर खन्देह होने लगा | लेला सुन्दरी थी, पर उस के भीतर भयानक राक्षस की श्राकृति थी या देवमूत्ति ! यह बिना जाने मैंने क्या कह दिया ! इस का परिणाम भीषण भी हो सकता है । मैं सोचने लगा । रामेश्वर को मिचर तो मानता नही, ` किन्तु सुक्ते उस से शत्रुता करने का क्या अधिकार है | 4 >< >< >< चन्दा के दक्षिणी तट पर ठीक मेंरे बँगले के सामने एक पाठशाला: थी । उस में एक सिंहाली सज्जन रहते थे । न जाने कहाँ-कहाँ से उनको. चन्दा मिलता था । वे पास-पड़ोस के लड़कों को बुलाकर पढ़ाने के लिए, बिठाते थे । दो मास्टरों को वेतन देते थे । उनका विश्वास था कि चंदा का तट किसी दिन तथागत के पवित्र चरणु-चिन्हों से अंकित डा था वे द्राज भी उन्हें खोजते थे । बड़े शान्त प्रकृति के जीव थे । उन का श्यामल शरीर, कुंचित केश,तीद्ण दृष्टि, सिंहली विशेषता से पूणं विनय; मधुर वाणी श्र कुछ-कुछ मोटे श्रघरों में चौबीसों घंटे बसनेवाली हैँसी आकषेण से भरी थी । मैं भी कमी-कभी जब जीभ में खुजलाहट होती, वहाँ पहुंच जाता । श्राज की वह घटना मेरे गम्भीर विचार का विषय बन कर सुख व्यस्त कर रही थी । मैं अपनी डॉगी पर बैठ गया । दिन श्रमी घन्टे-ठेढ़-घन्टे बाकी था । उस पार खेकर डोगी जे जाते वहत देर नहीं हुई । मैं पाठशाला और ताल के बीच के उद्यान को देख रहा था | खजूर शरोर नारियल के ऊँ चे-ऊँ चे वृक्षों की जिस में निराली छुटा थी | एक नया पीपल श्रपने चिकने पत्तों की इरियाली में भूम रहा था। उसके . नीचे शिला पर प्रज्ञाखारथि वैठेये। नाव को टका कर मैं उनके समीप पहुचा । शस्त होनेवाले सूयबिम्ब कौ रगीली किरणें उनके प्रशांत मुख-




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