कार्ल मार्क्स | Karl Marks
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.09 MB
कुल पष्ठ :
394
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चाल्य और स्कूली जीवन ( १८१८-३४. ई० )
इसाई घर्मको स्त्रीकार करना । लेकिन, धर्म-परिवत्त॑नका अर्थ था समी सगे-
सम्पन्धियोसे हमेशाके लिए; विच्छेद, तथा श्रपनी कुलागत परम्परात्रों और
मान्यताओओंका परित्याग । यह मात्रनायें कितनी शक्तिशाली हैं, इसे हिन्दू अच्छी
तरह समक सकते हैं, साई या सुसलमान होनेपर उनकी क्या गति होती है;
इसे बह जानते हैं । यहूदी धर्म छोड़कर इताई होनेका मतलब केवल यही नहीं
था; कि श्र एक धर्मके सभी बन्घनोसे श्रादमी सुक्त हो गया; झब वह
भी खा सकता है, श्र दूसरे कालातीत रीति-रवाजोंका भी पावन्द नहीं; बल्कि
इसाई होनेका मतलब था सामाजिक दासतासे सुक्ति--झब वह झपने देशवासी
दूसरे इंसाइयोकी तरह झपने वर्गके झनुसार स्थान पानेका अधिकारी था |
उधर यहूदी पुरोहित वर्ग और समाज भी इतना जड् था; कि धर्म-प्रंथो और
रीति-रवाजोंमे जरा भी झविश्वास प्रकट करनेपर जातिच्युत कर दिया करता
था । काले मार्क्सके पिंताका सम्बन्ध वकील होनेसे अब व्यापारियों और रू्रीके
समाजसे मिन्न साघारण जर्मन समाजसे अधिक पढ्ता था। हाइनरिख माक्संको
यहूदी जातिसे अधिक एशियाके प्रति मक्ति थी। वह एशियाके वीरतापूर्ण
इतिहास और उसके वीरोको बढी आत्मीयताके साथ देखते थे । यह वह समय
था; जब कि कितने दी यहूदी जर्मनीमे अपने बाप-दादोंका धर्म छोड इसाई
घन रहे थे । हाइनरिख हाइन ( महाकवि ), एडवर्ड गाज झ्रादिने भी सामाजिक
सुक्ति तथा जन्मभूमिकी साधारण जनतामें मिल ॒जानेके ख्यालसे इसाई धर्मको
स्वीकार किया था | इस प्रकार १८२४ ई० मे अपने वेटेकी ६ सालकी उमरमे
हाइनरिख मार्क्सका इंसाइ बनना बिल्कुल नई घटना नहीं थी। राइनलैंडम
यृहूदियोंकी सूदखोरी श्र बनियापनके कारण लोगोंकी जो झ्पार घृणा यहूदियोंके
प्रति थी, उससे मुक्त होनेका यही सबसे आठान रास्ता था । काल श्रमी क-ख
सीखने लगा था, जब कि यह परिवत्तैन परिवारमें हुआ । पिता पहले हीसे
उदार विचारके थे, उसपर यह धर्मे-परिवर्तन, फिर यदि मार्क्सको घरमें यहूदी
कट्टरताकी नव भी देखनेको न मिली हो; तो श्राश्चर्य क्या ! यहूदी धर्म और
उसकी कटरताको तो कालंखे घरके बापने ही विदा कर दी थी । हाइनरिखने -
अपने प्रतिभाशाली पुत्रकों बहुतसे पत्र लिखे थे, जिनमे कहीं भी यहूदीपनकी
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