कृषि विज्ञान भाग - 2 | Krishi Vigyan Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( 5 ) पहुंच सक्ता; न कृपि-व्यवसाय स उनकी आधिकावम्था ही सुधर सकती है । यह चात भले ही ठीक हो कि ऐसे बीजों की बरुवा स स्वाने-पींन के लिये क्पकों को किसी न किसी तरह से महनत करने पर इतना अन्न उपज के रूप में मित्त जाय कि चह पनी गुजर वसर कर नें। आजकल का ज़साना अब ऐसा नहीं रहा कि थोड़ी आय में गुजर करन के निय सभी प्राणी त्याग का जीवन व्यतीत कर| दुनिया की ग्गन चदन गड है । जा किमान अपने बाल-वच्चों को शिक्षा नहीं देता या वच्चां की शादी पदून-निग्बन के बाद पढ़ी लिग्वी नड़फियों से नहीं करता, उसका कुटुम्ब स्मशान घाट हो जाता है । उसके घर के प्राणी कलह का जीवन आधथिक-कटिनाइयों के कारण चिनान हे | उसनिये पारिवारिक आय का चदान क निय व क्रभि-उग्रवमा् मे दशी महाजनो क वीजो का त्याग करना पड़ेगा। खेतों की बुवाई के लिये उन्नति प्राप्त सुघर हुये वीजों को ग्वतों में वाना पड़ेगा, जिससे फ़सनों से देशी सहाजनों के बीजों की अपेक्षा पैदावार अधिक मिले । देशी-मद्दाजनों के वीजों से जा बुवाइ होती है, उसकी उपज की परत अधिकतर देहातों की ही बाजारों में होती है। देश के वड़-चड़ नगुरों में तथा विदेशों में ऐसे वीजों की स्वपत नहीं होती इसलिये हमार देश के किसानों को फ्रसलों की उपज के रूप में उचित मूल्य नहीं मिल सकता । वनमान कान में हमारे देश का सम्बन्ध व्यावसायिक दृष्टि




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