शांति के हिन्दी पत्र | Shanti Ke Hindi Patr

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Santi Ke Hindi Patr by काशीनाथ शंकर केलकर - Kashinath Shankar Kelkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना “संसार की भाषाओं में अनुपात की दृष्टि से हिन्दी भाषा का तीसरा क्रमांक है।” (क) हिन्दी साहित्य की दीरघ॑ंकालीन गाथा को सुत्रबद्ध रूप में प्रस्तुत करने का प्रथम प्रयास करने वाले फ्रांसीसी लेखक “*गार्सा द तासी ” के दाब्दों में “हिन्दुस्तानी को समस्त एशिया मै कोमलता भौर विशुद्धता की दृष्टि से जो ख्याति प्राप्त है वह अन्य किसी को चहीं । वह भाषा वास्तव में भारठ की सबसे अधिक अभिव्यंजना दक्ति सम्पन्न और सबसे अधिक रिष्ट प्रचलित भाषा है ।”' (ल) इस श्रेष्ठ भाषा के गद्यकाल का प्रारम्भ और प्रारभिक स्वरूप के सम्बन्ध में अभी तक कम सामग्री उपलब्ध है । प्राप्त सामग्री के आधार पर कहा जाता है कि सं० १८०३ ई० में श्री लल्लूलालजी ने एक नई भाषा गदी और उसी का नाम खड़ी बोली पड़ा । परन्तु यह्‌ कथनं सन्देहात्मक दै क्योकि इसक्रा पूवेवर्ती रूप सोलहत्री, सत्रहुवीं शताब्दी के ग्रन्थ-वार्तापाटित्य, टीका साहित्य भौर अनुवाद ग्रन्थों में पहले से ही प्राप्त होता है । मराठा इतिहास के ग्रन्थ पढ़ते समय १८ वीं शताब्दी में लिखे कुछ थोड़े हिन्दी पत्र” देखने को मिले । अतः उस शती के पत्र खोज निकालकर, उनका अध्ययन कर तत्कालीन भाषा का रूप-हिस्दी गद्य का प्रारम्भिक रुप-जाँचने की उत्कण्ठा एवम्‌ जिज्ञासा निर्माण हुई । इसकी चर्चा आदरणीय डॉ० मिश्र जी से करने के उपरान्त उनके प्रोत्साहन से “१७ वीं ती के हिन्दी पत्र” इस विपय पर उनके निर्देशन में पी. एच्‌. डी. उपाधि के लिये काय करता रहा । इस प्रबन्ध के लिये भिन्न-भिन्न स्थानों से और संस्थाओं से सामग्री ढंढनी तथा (क) “सन्डे स्टन्डडे'” मई २१, इ. स. १४६१ पर. १३ नेशनल आर्काइव्‌ज वाशिंगटन की सूचना के अनु ( ख ) हिन्दुई साहित्य का इतिहास पृ. ५६ [ मु० लेखक--गांसादलासी, अनु० ड० लक्ष्मीतागर वार्य | डि रे कर्‌ इन्टर्‌




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